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________________ किसी से भी पूछ लीजिए उसके सम्बन्ध मे कि आप कौन हैं ? तो कोई कहेगा मैं डाक्टर हूँ, कोई अपने आपको वकील बतलायेगा, तो कोई न्यायाधीश, कोई स्वय को इजीनियर कहेगा, तो कोई व्यापारी । इस प्रकार अपने आपको 1 कोई कुछ बताता है, तो कोई कुछ । मतलब यह है कि प्रत्येक मानव अपने आपको अपने कार्य-व्यवहार के अनुरूप ही दर्शाता है । परन्तु अपने आपको मनुष्य कोई नही बतलाता, जबकि वह मूलत इसी रूप मे है । इसलिए मनुष्य को मनुष्य के रूप मे समझना आज के युग की सबसे बडी आवश्यकता है । खेद है कि आज का मानव सभ्य, सुसंस्कृत अथवा पठित होते हुए भी स्वय को बिसराए हुए है, भूले हुए है । वह अपना परिचय केवल ऊपरऊपर का ही दे पाता है । जबकि आवश्यकता है अपने आपको सही रूप मे जानने- पहिचानने एव प्रस्तुत करने की । मनुष्य अन्य कुछ बाद मे है सर्वप्रथम वह मनुष्य है । मानवता ही उसका सबसे वडा एव सुन्दर परिचय है । चिन्तन-कण | ३
SR No.010612
Book TitleChintan Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Umeshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1975
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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