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0 व्यक्ति को जीने के लिए स्नेह चाहिए । स्नेह का चाह का तीव्रता और उसकी असफलता मनोविक्षेप को जन्म देती है । व्यक्ति अपने से बाहर की सारी दुनिया से जान-पहचान और प्रेम मांगता है। गांव से, गली से, मकान से, पास से, पडौस से, सगे-सम्बन्धियो से, यहाँ तक कि दूर के चाँद सितारो तक से स्नेह प्राप्ति की चाह बनी ही रहती है । यह एक मानव मनोवृत्ति है । परन्तु मानव की अपनी भी कोई एक सीमा होती है । अपनी सीमाओ का अवोध ही मनोविक्षेप का मूल कारण है । सम्बन्ध स्थापित करने की प्रक्रिया मे व्य वित कुछ सामाजिक मूल्यो, परम्पराओ, रूढियो और स्थितियो से टकराता है। समाज तव जितना विघटन भोग रहा होता है, यह रगड उतनी । ग्रास दायक होती है।
६२ | चिन्तन-कण