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________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात मंडण गुड़िया नहीं महारिण , ग्रहण राजकुमार-गुड़ी' ॥ १ त्य पांतरै वडो छत्र पड़ियो, बोटण गढां अथग जळबोळ । नेवर रोळ किया म्रगनैणी, रांण कियो न पाखर* रोळ ॥ २ मांडण चाचगदे मारेवा, करै जिगन मन कूड़ कियो । ऊतारियो सनाह आपरौं', दळद करी सनाह दियो ।। ३ १३ रावळ देवीदास चाचारो, रावळ चाचो ऊमरकोट ऊपर गयो हुतो', पछै उणे बेटी देनै चूक कर मारियो । पछै भाटियां पांच वडेरां11 कोस ४ पाछो डेरो करनै12 देवीदासनं जेसळमेरसूं तेडियो, देवीदास प्रायो। भाटिये कह्यो-"टीको काढां14 ।" तरै देवीदास कह्यौ-"टीको हमार हूं कोई कढाऊं नहीं" । के तो मांडण म्हारा बापनूं मारियो छै तिणनूं मारूं, कै हूंई काम पाऊं' ।" तरै इण वात सारै साथरा सींग आकास लगा। पछै गुढ पाखरनै ऊमरकोटसूं ढोवो हुवो, गढ भेळियो । त? सोढांरो घणो साथ मारियो । मांडण, भीमदे, भोजदे भातीजां सहित नीसरियो1 सु कोसां ८ ऊपर जातां आपड़िया, तठे वेढ हुई। मांडण, भोजदे, भीमदे, आदमी . 1 कवचधारी राजकुमार । 2 उसके धोखेमें, उसके बदलेमें। 3 अत्यन्त क्रोधसे गढका नाश करनेके लिये। 4 घोड़े या हाथीका कवच । 5,6 चाचगदेको (मारनेके लिये) विवाहके मिससे धोखा देकर मारा। 7 अपना। 8 चाचाका पुत्र । 9 गया था। 10 फिर उसने अपनी बेटीका उससे व्याह करके धोखेसे मार दिया। II पांच बड़े भाटियोंने । 12 करके। 13 बुलाया। 14 राज्य-तिलक करदें। 15 तव। 16 टीका अभी मैं नहीं कढवाऊंगा। 17 या तो जिस मांडणने मेरे बापको मारा है उसको मैं मारवं, या फिर मैं ही काम आ जाऊं। 18 तब इस बात पर सभी साथ वालोंको बड़ा क्रोध उत्पन्न हुआ (बहुत उत्तेजित हो गये)। 19 फिर सभीने कवच धारण करके उमरकोट पर हमला किया और गढ पर अधिकार कर लिया (नाश कर दिया)। 20 वहां पर सोढोंके . बहुतसे सैनिकोंको मार दिया। 21 निकल कर भाग गया। 22 पकड़ लिये। 32 वहां पर लड़ाई हुई।
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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