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________________ ६८ ] मुंहता नैणसीरी ख्यात घड़सी पाबू दिसा गयो तो', सु पाछो वळतो मेहवा मांहै आयो । माळी घरे डेरो कियो, सु जगमाल सिकार चढियो, तरै घड़सी ऊभो थो सु जुहार न कियो । तरै रावळजीनूं जगमाल आय कह्यो"जु गांव मांहै आज इसड़ो रजपूत आयो छ, सु कैतो कोई गिवार छै, के कोईक राजवीरै घररो छोरू छै।" तरै रावळजी तेड़ियो', सु खबर को पड़े नहीं । तरै चाकरनूं पूछियो, कह्यो-"तूं जांण छ, प्रो कुण छै1° ? "तरै चाकर कह्यो-हूँ तो क्यूं जांणूं नहीं1; नै .. . एक दिन म्हनै घड़सी मारणो विचारियो थो, तरै मोनूं कह्यो-"तूं हथियार नांख दे, रावळ मूळराज राणा रतनसीरी आण, तोनूं मारूं नहीं।" तरै रावळ मालदेजी अटकळियो जु मूळराज रतनसीरो बेटो-भतीजो छै1 । घणो आदर-भाव कर राखियो14 1 पछै रावळ मालदेजी आपरा बेटा जगमालरी वेटी घड़सीन परणाई13 । तठा पर्छ कतराईक दिन घड़सी रावळ मालदेजी कनै रह्यो । पछै मास ५ तथा ७ प्राडा घातनै घड़सी रावळ मालदेजीसू अरज कराई"-"जु राज कहो तो हूँ पातसाहरी अोळग जाऊ18 । मांहरी धरती वळणरो काई सूल करां।" तरै रावळ मालदेजी खुसी हुयन सीख दीवी। तरै रावळ घड़सी आपरा माणस लेने 1 फळोधीरै किनारै किरड़ार 1 घड़सी अपने भानजे मैंगलदेवको प्रावूकी ओर पहुँचानेको गया था। 2 वह वहांसे ... लौटता हुआ मेहवामें आया। 3 किसी मालीके घर पर डेरा लगाया। 4 उस समय घड़सी खड़ा था परंतु उसने जगमालको जुहार नहीं किया। 5 ऐमा । 6,7 सो या तो वह कोई . गँवार है या किसी राजवंशीके घरका पुत्र है। 8 तव रावलजीने उसे अपने पास बुलवाया। 9 परंतु कोई पता नहीं लगा । 10 तू जानता है क्या, यह कौन है ? II मैं तो इसके बावत: कुछ नहीं जानता । 12 किन्तु एक दिन जब कि इस घड़सीने मुझे मार डालनेका इरादा कर लिया था, लेकिन फिर उसने मुझे कहा कि 'तू शस्त्र डाल दे तो तुझे नहीं मारूंगा, मुझे . रावल मूलराज और राणा रतनसीकी शपथ है ।' 13 तव रावल मालदेवजीने अनुमान लगाया कि यह मूलराज और रतनसीके बेटे-भतीजोंमेरो है। 14 फिर वहुत आदर-भावसे रखा। 15 पीछे रावल मालदेवजीने अपने पुत्र जगमालकी पुत्रीका घड़सीके साथ व्याह कर . दिया। 16 जिसके वाद कितनेक दिन घड़सी रावल मालदेवजीके पास रहा। 17 फिर . . ५-७ महीने बीत जाने के बाद रावल मालदेवजीसे अर्ज करवाई। 18 यदि श्रीमान ग्राना करें तो मैं बादशाहकी सेवामें जाऊं। 19 हमारी धरती (देश) प्राप्त करनेका कोई उपाय करु। 20 तब रावल मालदेवजीने प्रसन्न होकर जानेकी आज्ञा दी। 21 तव रावल घड़सी अपने प्रादमियोंको लेकर ।
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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