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________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ ५६ आ रांणी रावळ अगै, गळ तुळछीदळ हार ॥३० तेलोचन तेही-वदन', तेवै थन गज थन्न । दुय भायां तणा विसावणा, जांण अंतेवर कन्न ॥३१ रावळ जमहर रच्चियौ, अंतर सरग प्रमाण । सोढी कहियौ सांमनूं, मो आपो अहिनांण" ॥३२ जे सोढी सिर कापियो, चहरो थियै संसार । कहसी रावळ ओ कियो, एहो' दोख विचार ।।३३ . जे कर काटां दाहिणो, खांडो किह झालांह' । प्रोळी हुयसी प्रह1 समै, मेळो मिलकांणांह ।।३४ रावळ अंग निसंग कर, आ1 वाहै14 केवांण । चलणह काट पापियो", नांउ पुरख सहनांण ॥३५ वात रावळ दूदो तिलोकसी जसहड़ोत जेसळमेर गढ ऊपर छै । पातसाही फोज तळहटी छै । वरस १२ विग्रहनै हुवा छै। मामला घणाही हुवा, पण गढ हाथ आवै नहीं । तर एक दिन रावळ दूदै अँडसूरियां गढ ऊपर हुती, तिणांरी दूधरी खीर कराय पातळारै खीर लगायनै वे पातळां तळहटी नांखी । पछै वे पातळां लसकररै लोग ले जाय माहै सिरदार थो तिणनूं28 दिखाई ;तरै कटकरै सिरदार विचारियो-“बारै बरस तो हुवा, अजेस29 गढ माहै संचो अतरो1 जु दूध दही हुवै छै", सु गढ हाथ आवरणरो नहीं।" तुरकै डेरो उपाड़ियो । तरै भाटी भीमदे आसकरणोत, आसकरण जसहड़ोतरै, I यह। 2 त्रिलोचन । 3 त्रिवदन । 4 तीनों 1 5 चिन्ह । 6 अपकीर्ति । 7 ऐसा । 8 किस प्रकार । 9 पकडू। 10 होगा। II प्रभात । 12 काट कर । 13 यह। 14 प्रहार करे । 15 तलवार । 16 पांव । 17 दिया। 18 नाम । 19 चिन्ह । 20 पहाड़के नीचेकी भूमि। 21 युद्ध को । 22 अाक्रमण बहुत हुए। 23 मैलाखोर सूअरियें, ग्राम-शूकरिये। 24 थीं। 25 जिनकी । 26 पत्तलोंके । 27 गिरादीं। 28 जिसको । 29 अभी तक | 30 संचय । 31 इतना । 32 प्राप्त हो रहा है । 33 तुकोंने मोर्चा उठा दिया । 34 तव ।
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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