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________________ - - मुंहता नैणसीरी ख्यात [ ३२७ सादूळ ऊपर चढिया ; अर हालतां इसड़ो सुगन हुवो, तैरो विचार ... कहो' ।' ताहरां काळे कह्यो-'सुगन ले जावसी मेहराजरं घर । काळो बोलियो-'अरड़कमलजी ! थे जिए काम पधारो छो सो सिद्ध हुसी । सिरदार हाथ आवसी। थाहरी जैत हुसी । कालै विहांण इण विरियां मरसी। इयै सुगनरो अो विचार छै । ताहरां अरड़कमल आघा चढि खड़िया। महिराज सांखलैरो बेटो आल्हणसी राव रांणंगदे, सादै मारियो हुतो। तैरै वासते मेहराज पागू हुवो। कटक सादै ऊपर लीये जावै । . प्रागै सादूळ भाटी परवाह दे, ढोल वजाय, सेजवाळो लेनै पूगळ नं चालियो । ताहरां लायांरै मगरै अरड़ कमल जाय पहंतो' । ताहरां सादैनूं खबर हुई–'अरड़कमल आयो।' ताहरां अरड़कमल बोलियो'वडा भाटी ! जाहै नां, हूं घणी भुंयथी आयो हूं। ताहरां ढाढी कहै 'ऊ. मोर करै परळाई, मोर जाइ पण सादो न जाई ।' ___ताहरां सादूळ अपूठो घिरियो । रजपूत सांम्हां मंडियो। लड़ाई हुई। रजपूत कांम आयो। सादूळनूं घोड़ाहूं उतर पर इसी तरवार वाही सु घोड़ारा च्यारै पग अळगा पड़िया । सादूळ काम आयो । ___I तब अरड़कमलने कहा-“कालाजी ! हम तो सादूलके ऊपर चढ़ कर आये हैं। चलते समय हमें इस प्रकारके शकुन हए हैं, उसका फलाफल विचार कर कहिए।" 2 तब कालेने कहा-"यह शकुन प्रापको मेहराज के घर पर ले जायेंगे। 3 जिस । 4 सरदार हाथ पायेगा। तुम्हारी जीत होगी। कल इस समय प्रभातमें वह मरेगा। इस शकुनका . यह फल है। 5 तब अरड़कमल चढ़ कर के आगे चला। 6 इधर सादूल भाटी त्याग देनेके बाद ढोल बजवा कर अपनी नववधूकी पालकीको साथ ले कर पूगलको रवाना हमा। ढोल बाजणो = विवाहके सानन्दपूर्वक सम्पन्न हो जाने और न्योछावर और त्याग आदि नेग एवं अन्य प्रथाओंके निर्विघ्न समाप्त हो जानेके बाद बारात रवाना हो जाते समय बारात वालोंकी अोरसे ढोल बजवाये जानेकी एक आवश्यक और महत्वपूर्ण प्रथा। इसे 'ढोल वाजणो', 'ढोल बजवावरणो', 'जीतोड़ारा ढोल धुरावणा' भी कहते हैं। 7 तब लायांकी पहाड़ी के पास अरड़कमल उसे जा पहुँचा। 8 अरड़कमलने कहा-"बड़े भाटी सरदार ! जाइये नहीं, मैं तो बहुत दूरसे आपके लिए आया हूँ। 9 तब ढाढी कहता है -"मोर घोड़ा उछलता-कूदता चाहै उड़ जाये, परंतु सादूल कहीं नहीं जायेगा।" 10 तब साल पीछा ...फिरा। II अरड़कमलने घोड़ेसे उतर कर सादुलके ऊपर ऐसी तलवार चलाई सो सादल और घोड़ाके चारों पांव दूर जा गिरे। 'ऊड मारकर
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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