SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 315
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ ३०७ - माथै छत्र कर बैठौ। तितरै चारण गयो। देखै तो चूंडैरै माथै ऊपर छत्र करनै सरप बैठो छै। ज्युं मिनखरी किड़वा हुई त्युं सरप सिळक नै रूंख माहै पैस गयो' । ताहरां चारण नजीक जाय नै चूंडैनूं जगायो। कह्यो-'बाबा ! तूं क्युं पायो जंगळमें ? घरै चाल ।' ताहरां घरै ले आयो। प्राय मानूं कह्यो-'मा ! तैं बुरो कियो । चूंडैनूं आज पर्छ मतां मूंकै ।' _ पछै चारण एक घोड़ो लायो । हथियार लायो । वागो करायो । चूंडै नूं घोड़े चाढ़ि अर महेवै गयो । प्रागै रावळ मालैजीरै सारो मुदो नाई ऊपर छै । ताहरां नाई मिळियो। नाईनूं घणी भोळावण दीनी । नाई कह्यो-'रावळजीरै पावै घातो ।' ताहरां भलो दिन देख नै रावळजीरै पाए लगायो । रावळजी दिलासा दीधी'। हिवै चंवडोजी रावळ मालैजीरी चाकरी करै। एक दिन रावळजीरै ढोलियै हेठे सोय रह्यो । नींद आय गई। ताहरां रावळजी पोढण पधारिया । ताहरां ढोलिया तळे आदमी दीठो । ताहरां जगायो। रावळजी महरबान हुवा । नाई पण विनती कीधी। कहियो-'राउ ! चंवँडो भलो रजपूत छ । काई एक खिजमत सांपीजै । ताहरां कह्यो-'गुजरात सामी चोकी राखौ ।' अर कह्यो- रजपूत साथै हुवौ।' ताहरां सिखरो बोलियो-'रावळजी ! मोनूं समझ अर देज्यो ।' कहियो-'जी, म्हें . हुकम करां छां, थे जावो ।' ताहरां ईंदा साथै दिया। चंवंडैनं घोड़ो, सि.रपाव दे विदा कियो । ताहरां चंवडो काठे थांण जाय बैठो। बडा जाबता कीधा । कितराइक दिन हुवा, ताहरां एक घोड़ारी .. ढालिम - ... I जैसे ही मनुष्यका पदचाप हुआ, सर्प रेंग कर के एक वृक्षकी जड़ोंकी खोहमें घुस गया। 2 चूंडेको आजके बाद फिर कभी मत भेजना। 3 बागा बनवाया। 4 वहां रावल मल्लीनाथजीका सारा दारोमदार एक नाईके ऊपर है। 5 नाईको बहत सिफारिश की। 6 इसे रावलजीके पाँवों लगाओ। 7 रावलजीने आश्वासन दिया। 8 एक दिन रावलजीके पलंगके नीचे सो रहा। 9 इसे कोई सेवा सौंपिये। 10 तब कहा-गुजरातके ___ोरकी चौकी पर रखा जाय । II तव सिखराने कहा-मुझे समझ कर साथमें देना। ... 12 तब चूंडा काठाके थाने पर जाकर बैठ गया और वहां उसने अच्छा प्रबन्ध कर दिया।
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy