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________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात . [ २६३ ... पावै । हूं अाय न सकू' ।' ताहरां आदमी अमरकोट गयो। जायनै राण मांडणनूं हकीकत कही। ताहरां रांण मांडण कह्यो-'ठाकुरे ! कुंभो इसो रजपूत, जिये घरै ले जायनै परणावीजै ।' ताहरां मांडण कहाड़ियो-'अमरकोटसूं सौ कोस महेवो छ । पचास कोस म्हे आवां छां, पचास कोस थे श्रावो।' इसो कहाड़ियो । ताहरां आदमी आयो नै कुंभैनूं कह्यो। कुंभै यादमी अपूठो मूंकियो, अरे कहाड़ियो-'छांना-छांना आवज्यौ । ताहरां राणे मांडण सेजवाळ तयार कराया। लोक साथ ले अर हालिया। कुंभैयूँ आदमी मूंकियो । कुंभो वर वण चालियो । प्राय रांणा मांडणतूं मिळियो। मांडण कुंभानूं देख राजी हुवो। कुंभो परणियो। हथळेवो छोड़ियो, पर कुंभ कह्यो-'मोनूं विदा द्यो ।' तांहरां कह्यो जी-'दोय पोहर रहो, राजलोक कहै छै । युं वात करतां वार लागी । तितरै11 आदमी आय कह्यो-'जी हेमो पायो । आई नै महेवैरै किंवाड़े घाव दियो । 'हेमै रा हेरा फिरता हुता। कुंभो चढे और महेवै प्रावै। सु हेमो प्रायो, ताहरां कूभै विदा मांगी। घोड़े असवार हुवो। ताहरां रायसिंघ मांडणरो बेटो, पाटवी कुंवर तिको बोलियो, कह्यो-'जी जिका वींदणी तियैरो मुंहडो देखो' । ताहरां घोड़े चढियै हीज वैहलरी खोळी ऊंची करनै मुंहडो जोयो' । कह्यो-'जी जोयो छै, सुख पावज्यो ।।७।' ___ I मुझको रावलजीने देश सुपुर्द किया है। यदि मैं इस समय विवाह करनेको आ जाऊं तो हेमा तुरंत ही महेवे पर चढ़ कर पा जाये। अतः मैं इस समय नहीं आ सकता। 2 तब राना मांडणने कहा-'ठाकुरो ! हेमा ऐसा वीर राजपूत है उसे उसके घर जाकर कन्याको व्याही जाये। 3 इस प्रकार कहलवाया। 4 कुम्भेने आदमीको पीछा लौटाया और उसके साथ कहलवाया कि 'चुपचाप गुप्त रीतिसे प्राना'। 5 आदमियोंको साथ लेकर चला। . . . 6 कुंभेको आदमी भेजा। 7 कुंभा दूल्हा बन कर चला। 8 कुंभेका विवाह हो गया। ज्योंही हथलेवा छूटा त्योंही कुंभेने कहा-'मुझे आज्ञा दीजिये। 9 स्त्रीजन कह रही हैं कि दो पहर ठहरें। 10 इस प्रकार बात करनेमें देर लग गई। II इतने में। 12 अजी! हेमा आ गया और उसने आकर महेवेके किंवाड़ों (दर्वाज) पर घाव किया। 13 हेमेके . जासूस फिरते थे। 14 अजी ! जो दुलहिन है उसका मुह तो देख लो। I5 तब घोड़े पर चढ़े हुए ही वहलीकी खोल (पर्दा, यावरण) उठा कर मुंह देखा। 16 और कहा कि 'देख लिया है, सुख की प्राप्ति हो।
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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