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________________ २६२ ] मुंहता नैणसीरी ख्यात 1 हूं चढू ।' अर कूंभो पण सावचेत रहै । ग्राठो पोहर हथियार बांध्यां बैठो रहै । घोड़ा २ पलांग मांडिया रहे । च्यार पोहर घोड़ांरी चोकी । एक घोड़ो चरे; एक घोड़े पलांग मांडिये रहे । ईय भांत कुंभो रहै । इसी कुंभैरी धाक । तैसूं हेमो देस में पंसण पाव नहीं । आा वात सिगळं कोर्ट सुणी । 6 9 10 ताहरां रांणो मांडण सोढो ऊमरकोटरो धरणी, तिये श्री वात सुणी, र कह्यो - "कूंभो वडो रजपूत; जियेरी धाकसूं हेमो वैस रह्यो । महेवैरी धरती वसी' । फेर हेमो महेवैरी में न आयो । इयेनूं परगाईजै इसो रजपून छै । ताहरां सिगळां ही रजपूतां कह्यो - 'वाह ! वाह !' ताहरां वांभण तेड़ने नारेल दियो" । कह्यो जी - 'कूंभे जगमालोतनूं महेवै जाय नाळेर वंदावो" । बाईरी सगाई कूंभैसू कीबी छै'' ।' ताहरां बांभरण नाळेर ले हालियो नै महेवै आयो । पछै भलो मोहरत जोवाड़ 11 कुंभैनू प्रोहित नाळेर दियो, ताहरां कूंभ ऊठ, सलांम कर नाळेर लियो । कुंभ कह्यो - 'रांणजी मोनू रजपूत कियो । हिवै हूं रजपूत हुवो । मोनू मोटो कियो '" ।' वांभणनू भलीभांत विदा दीनी । श्रर को - ' मोनू रावळजी देस भळायो छे, जे हूं हिमारूं परणीजण ग्राऊं तो हेमो तुरत महे 3 14 15 16 I इस टोहमें रहता है कि कुंभा कहीं जाये और मैं चढ़ाई करूं । 2 दो घोड़े हर दम जीन कसे तैयार रहते हैं । 3 कुभेका ऐसा ग्रातंक कि हेमा देशमें (महेवे की धरती में ) 1 सुनी 15 तत्र प्रवेश ही नहीं कर पाता । 4 यह बात सभी गढ़ोंने ( गढ़पति राजानोंने) यह बात ऊमरकोटके स्वामी राणा मांडण सोढाने भी सुनी और उसने कहा 1 6 कुंभा बड़ा वीर राजपूत है जिसकी थाकसे हेमा जैसा वीर भी चुप बैठ गया । 7 महेवा प्रदेश पुनः बस गया। 8 हेमा फिर महेवा प्रदेश में नहीं आया । 9 यह ऐसा राजपूत है कि इसका विवाह (अपनी लड़की को देकर ) कर दिया जाये । 10. तव सभी राजपूतोंने कहा - 'वाह ! वाह ! ( बहुत अच्छी बात है ) । तव ब्राह्मरण को बुला कर नारियल दिया । II उसे कहा कि महेवे जाकर कुंभे जगमालोतसे इस नारियलका वंदन करायो ( नारियल-वंदन द्वारा सम्बन्ध स्वीकृत कराया जाय ). 1 12 कि बाईकी सगाई कु भेसे की है । 13 तब ब्राह्मण नारियल लेकर चला और महेवे श्राया । 14 दिखा कर ! 51 तव कुंभेने उठ कर नारियलको प्रणाम किया और नारियल ले लिया । 16 कु भेने कहा- 'राणाजीने मुझको राजपूत बनाया और अब मैं राजपूत वन गया । मुझको बड़ा बनाया ।
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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