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मुंहता नैणसीरी ख्यात
वात राव कानड़देजोरी कांनड़देजी' महेवै' राज करै छ। अर सलखोजीन गांम १ दियो । तेथ सलखावासी कहांणी, उठ रहै छ।
एकदा प्रस्ताव राव सलखोजीरै रांणी गुर्विणी हुती। ताहरां राव सलखो महेवै अायो । प्राय अर किरियांणो लियो । एक राठी' - वेगार लियो। तियरै माथै सरव असबाव दे अर आप चढ़ि घोड़े पर पूठे हुवो। मारगमें जावतां च्यार नाहर नळा खायन बैंठा छ। भख आपरो वैठा खाय छ । ताहरां त्यांनू देख सलखोजी घोड़ेसू उतरने धरती बैठा; नै वै राठी कह्यो'"-'हूं पूछ पाऊं ।' ताहरां सलखें कह्यो-'पूछि आव ।' ताहरां राठी दोडियो-दोडियो राव कानड़दे कनै गयो। कह्यो-'जी, सलखोजी पधारिया हुता, सुं किरियांणो लियो । गूढ' जावता हुता। सु म्हारै माथै पांड' हुती सु सुगन' हुवो । जिका रांणी किरियांणो खासी तैरो वेटो धणी हुसी, सु थांनू कहण आयो छू। किरियांणो अपूठो घेरीजै15; अर सलखैजीनू अयूठा घेरीजै । ताहरां कान्हड़देजी आदमी मूकिया 8-'जावो सलखैजीनै अपूठा ल्यावो।' आगे सलखोजी बैठा घड़ी १ दीठो; राठी न पायो' । ताहरां आप गांठ किरियांगरी घोड़ेरै आगै हान' दे अर घरै पधा- ...
__I राव तीड़ाके तीन पुत्र थे, कान्हड़दे, सलखो और त्रिभुवरणसी। त्रिभुवरणसीकी पुत्री कुमरदे जैसलमेरके रावल केसरिदेवको व्याही थी। सं० १४५३. में केसरिदेवके स्वर्गवास करने पर कुमरदे सती हुई। इस विषयका यह शिलालेख जैसलमेर में उपलब्ध हुया है। ओं संवत् विक्रमे । १४५३ वर्षे माह सुदी ८ राजश्री त्रिभूणसी राठड़ पुत्री महाराजांघिराज श्री केसरिदेव भार्या . ॥ राज्ञी श्री कुमरदे नाम ॥ महाराजा श्रीकेसरिदेव सह स्वर्गता श्री॥ (जैसलमेर पयर्टनके समय प्राप्त । ) 2 महेवा मारवाड़के मालानी प्रांतका एक भाग। 3 सलखा राव तीडाका मध्यम पुत्र। 4 वहां। 5 गर्भवती। 6 किरियांणो - सोंठ, अजवाइन, पीपरामूल, खांड, गुड़ आदि .. पंसारटकी वस्तुएं। 7 एक क्षुद्र श्रेणीकी जाति । 8 उसके सिर पर सामान देकर स्वयं . घोड़े पर चढ़ गया और उसके पीछे-पीछे चलने लगा। 9 मार्गमें चार नाहर बैठे हुए अपना भक्ष खा रहे हैं। 10 उस राठीने कहा । II गूढा = निवास स्थान, रक्षा स्थान। 12 गठड़ी। . 13 शकुन । 14 स्वामी । 15 वापिस लौटा लेना चाहिये । 16 भेजे । 17 एक घड़ी तक राठीकी प्रतीक्षा की लेकिन वह नहीं पाया। 18 घोड़े या ऊंटकी काठीका . . एक अग्र भाग ।