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मुंहता नैणसीरी ख्यात [ २७५ दीठो।' ताहरां रावजी चावड़ी ताजणा २-३ वाह्या । ताहरां चावड़ी बैठी रही । नींद न पड़ी । वेदले थकां दिन ऊगो । ताहरां राव सीहो बोलियो-'चावड़ी ! तूं मन में अप्रीत मत जांणै । म्हैं तो ताजणा इतरै वासतै वाह्या छ जु तो नींद न पडै । नींद पड़ियां सुहणारो फळ मिटै छै । थारै तीन पुत्र हुसी, सु सीह सारीखा हुसी। घणी धरती लेसी । वडो वधारो हुसी। इतरी वात सुणै रांणी खुसी हुई। बहुत हरखित हुई छै । कितरैहेकै दिनै पुत्र हुवा ।
__ I तब रावजीने चावडीको दो-तीन चाबुक मारे। 2 नींद नहीं आई। 3 उदासीमें दिन निकल आया। 4 तब राव सीहाने कहा-चावड़ी! तू अपने मनमें हमारी नाराजी नहीं समझना। 5 मैंने तेरेको चाबुक इसलिये मारे हैं कि तेरेको नींद न आये। 6 नींद आजानेसे स्वप्नका फल वृथा हो जाता है। 7 इतनी बात सुन कर रानी हर्षित हुई।