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मुंहता नैणसीरी ख्यात पछै संमत १६६२ गुजरातसूं सीख दी तद गांव २५सू भाद्राजण पटे दियो थो' । पछै संमत १६६४ भाद्राजणरो पटो तागीर कर पागलो. हीज पटो राखियो । पछै संमत १६६८ श्री हजूर गयो । पछै मुहतो.' केसो सुरतांणजीरो थो सु गोयंददासजी रावळे राखियो तर दिलण था छाडि आयो । पछै केसानूं मार आयो। तद गोयंददासजी धरती ... मांहिथी परो काढियो, तरै नागोर जाय रांणा सागररै वसियो । गांव भांउंडा वसीनूं दियो थो'। रांण सागररै उठे जाय वसियो।। पछ रा।। नरसिंघदास कल्याणदासोत नै रा।। सूरजसिंघ ने सुंदरदास, रांमदास चांदावतरांसू माहो-मांहि उपाव हुवो । अ' ठाकुर चढ ऊपर आया। संमत १६६६ जेठ सुदि ८ भांउंडा वेढ हुई1° । सुरतांणरै हाथ नरसिंघदास, सूरसिंघ, सुंदरदास रह्या11 । सुरतांण ही खेत रह्यो । वडो मामलो हुवो ।
६ रामचंद सुरतांणोत । संमत १६५७रा मिगसर सुदि १२ जन्म । सं० १६७० केलावैरो पटो दे, साथ सांमो जाय घणा आदर कर
आंणियो । चीतोड़ रांणा सागररै वास थो। सं० १६७८ ब्रहांनपुरथा ... छाड़नै राव रतनरै वास वसियो । सं० १६८० वळे मनाय नै ... पाछो प्रांणन केलावैरो पटो दियो । सं० १६६१ वळे छाड बैठो। .
I जव सम्वत् १६६२में गुजरातसे (मारवाड़को) आनेकी आज्ञा मिली तब २५ गांवोंके साथ भाद्राजुन पट्टे में दिया था। 2 फिर सम्वत् १६६४में भाद्राजुनका पट्टा जन्त करके पहलेका पट्टा ही बहाल रखा। 3 पीछे सम्वत् १६६८में श्री हजूर (महाराजा)की चाकरीमें गय।। 4 सुरताणजीके मुहते केसेको गोयंददासजीने अपने रावलेमें रख लिया तब (सुरताण) दक्षिणको छोड़ कर पा गया। 5 तब (सुरताण) केसाको मार कर आ गया । 6 तव गोयंददासजीने (सुरतारणको) धरती (जागीरी)में से निकाल दिया, तब नागोर में राना सागरके यहां जा वसा (यहां नागोर भूलसे लिखा है, चित्तौड़ होना चाहिये)। 7 भांउंडा .... गांव बसीमें दिया था। 8 परस्पर झगड़ा हुअा। 9 ये। 10 सम्वत् १६६६ जेठ शु० ८ : . को भाउंडा गांवमें लड़ाई हुई। II सुरतःणके हाथसे नरसिंहदास, सूरसिंह और सुंदरदास ... काम आये। 12 सुरतारण भी काम आया। 13. बड़ी लड़ाई हुई। 14 सम्बत् १६७० : कैलावेका पट्टा देकर और कई आदमियोंके साथ सामने जाकर बड़े अादरसे उसको लिवा लाये। 15 सम्वत् १६७८ बुरहानपुरसे (को) छोड़ कर राव रतनकी सेवामें रहा। 16 सम्वत् १६८० में' . फिर मना करके वापिस लाये और केलावेका पट्टा कर दिया। 17 सम्बत् १६६१ पुनः . छोड़ कर बैठ गया।