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मुंहता नैणसीरी ख्यात
[ १३३ भाटियां-केल्हणां नै कछवाहां सगाई
१ कछवाहो महासिंघ मानसिंघोत राव आसकरण पूगळियारी बेटी परणियो ।
१ कछवाहो माधोसिंघ राव डूंगरसी विकूपुरियारी बेटी परणियो।
राव सूरसिंघरा बेटा११ बलू राव साथै काम आयो संमत १६६२ ।
१२ किसनसिंघ, संमत १७२१रा पोह वद २ ननेउरै चढियां राव विहारी मारियो । पछै जैतसी किसनानूं मारियो ।
१३ कुसळो। ११ पिरागदास । १२ पतो।
११ मोहणदास, सूरसिंघ बलू मारियां पछै विकूपुर टीको हुवो।
१२ राव जैतसिंघनूं मोहणदास मुंां” एक वार टीको हुवो । पर्छ संमत १७११ विहारी कोट लियो ।
१३ मालदे।
११ राव विहारीदास सूरसिंघरो। के दिन तो वीकानेर चाकर हुतो' । पछै रावळरा हुकमसूं जैसिंघ कना' कोट लियो। विकूपुर धणी हुवो। भलो सुसतो सो ठाकुर हुवो" । पछै संमत १७२१रा पोह बद २ बेटो बिहारीरो परणण गयो थो, वांसै साथ थोड़ाखू कोट
I केल्हण-भाटियों और कछवाहोंके संबंध । 2 कछवाहा महासिंह मानसिंहोत पूगलिया-भाटी राव आसकरणकी बेटीसे व्याहा । 3 कछवाहा माधोसिंह विक पुरिया-भाटी राव डूगरसी की बेटीसे व्याहा। 4 बलू अपने बाप राव सूरसिंहके साथ सम्बत् १६६२में काम आया। 5 किशनसिंहने सम्वत् १७२१की पौष बदी २ को नैनेऊसे चढ कर राव विहारीको मारा, परन्तु जैतसीने पीछे किसनाको मार दिया । 6 सूरसिंह और बलूके मारे जानेके बाद विकंपुरका टीका मोहनदासको हुआ। 7 मर जानेके बाद। 8 पीछ सम्वत् १७११में विहारीने कोट पर अधिकार किया। 9 कई दिन तो बीकानेर में चाकर रहा था। 10 पास से। II भला परन्तु सुस्त सा ठाकुर हुआ ! 12 विवाह करनेको गया था।