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________________ ७५ नहीं मुंहता नैणसीरी ख्यात माँन लियो वाँसवाहळारो । रावळ रो हलण-चलण' वासवाहळामें नहीं। माँन निपट आगतो? चालै । इणरै कीयाँ ही सारै नहीं । रावळ रै राजलोक* माँहे बेअदबी माँन घणी करै । रावळ घणो ही बळे, पिण जोर को चालै नहीं। तिकाँ दिनाँ राव आसकरन चंद्रसेनोत इणरै परणीयो हुतो । सु आसकरन माराँणो, सु आसकरनरी ठाकुराँणी हाडी रॉड थकी उग्रसेनरै राजलोक भेळी छै । बाळक छ, सु वड़ी रूपवंत छै। सु माँन इणसू बुरी निजर राखै छै । आ बडै घररी वहु द्वै तिसड़ी? सीलवंत छै। सु माँननूं इण आपरी धाय मेल कहाड़ियो"तूं रावळरो घर घणो ही विगोवै छ, नै तूं माँणस छै तो म्हारो नाम मत लेइ ।' आ चकित थकी रहै छै । माँन आँधो हुवो वहै छै12 । सु एक दिन उरड़नै13 इणरै घर माँहे आयो। इण दीठो14, म्हारो धरम15 न रहै, तद आ हाडी पेट मार मूई16 । तिण समै रावत सूरजमल जैतमालोत रावळ उग्रसेनरै वास17 छ । रुपिया हजार ६००० रो पटो पावै छै । सु आ वात हाड़ी इण कारण मूंई सुणी । इसी कही तद सूरजमलनूं घणी खारी लागी । नै सूरजमल रावळगूं कह्यो"माथै सूत बाँधो छो ।' हाथे हथियार झालो छो20 । रजपूतरो खोळि यो धारियो छै । मरणो एकरसू छै22 । ओ थारै घरमें किसो ●कळ ?''23 तरै रावळ कह्यो-“सोह बात देखाँ छाँ24 । जाँणाँ छाँ, पिण जोर कोई चालै नहीं । दाव25 को लागै नहीं।" तरै सूरजमळ रावळनूं कह्यो-“बळ बाँध, हीमत पकड़, इणनू दाव-घाव कर परो . काढस्यां ।26" रावळसू बोल-कोल किया। पछै सूरजमल माननू कवाड़ियो27-रावळ रै. घर विगोयै न सारियो28 । राठोड़ाँ ताँई पोहतो 1 अधिकार। 2 मर्यादारहित । 3 इसके कुछ भी अधिकारमें नहीं । 4अन्तःपुर। 5 क्रोध करता है । जलता है। 6 वैधव्य पालन करती हुई। 7 वैसी। 8 कहलाया। 9 कलंकित करता है। 10 मनुष्य । 11 यह सावधान रहती है । 12 मानसिंह मदान्धकी भांति चलता है। 13 बलात् साहस करके। 14 देखा। 15 पतिव्रत धर्म। 16 पेट में कटारी मार कर मर गई। 17 उन दिनों रावत सूरजमल जैतमालोत रावल उग्रसेनकी सेवामें रहता है । 18 बुरी लगी। 19 सिर पर पगड़ी बांधते हो। 20 हाथ में शस्त्र धारण करते हो। 21 क्षत्रीका शरीर धारण किया है। 22 मरना एक वार है । 23 तुम्हारे घरमें यह कैसा उत्पात । 24 सब वात देखता हूँ। 25 कोई उपाय नहीं लगता। 26 छल कपट कर किसी भी प्रकार इसे निकाल देंगे। 27 कहलाया। 28 रावलका घर बिगाड़नेसे काम नहीं बना।
SR No.010609
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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