________________
૪૨
मुँहता नैणसीरी ख्यातं
उतन' । जरगा नै ं राहगं वीच आ ठोड़ देंसेहरो देस कहीजै । उणां गांवां रजपूत, सांसण 2 वसै छै । खरवड़, चंदेल, वोडांणा, चांदण वसै छै । रेत ज्यूं भोग है । चावळ, गोहूं', चिणा, उड़द घणा नीपजै | आंबा छै । विचली - पाख' मछावळा ने जरगा वीच कुहाड़ियो नळो" कहीजै छै । उदैपुरसूं कोस २० है । कुहाड़ीयो नळो कोस १० लांबो छै । कळंझो रेवली उठे गांव है। जरगो कुहाड़िया नळासूं जीमणो छ । जरगारी पैली-कांनी केलवाड़ो नै दिखणनं रोहिड़ो गांव छै । केलवाड़ाथी कोस ९ रोहिड़ो है । दोळा-दोळा' जरगारा गांव छै । ऊपर-१ सायरो । १ आंतरी । १ गुढ़ो । १ काकरवो । १ कीसेर 1 १ गूंदाळी । जरगा ऊपर राजा हरीचंदरी थापी गुसांईरी पादुका छै तठे त्रिसूल छै । जरगा ऊपर पांणी घणों । तठा आगै नाहेसर भाडेररा मगरा कोस सात ७ रोहिड़ासूं छै, सु रोहिड़ासूं लागे छै । धरती निपट वांकी " । गांव अठै घणा छै । मेवाड़ सीरोहीरी कांकड | नै मारग पिण सीरोहीने 12 उदैपुरसूं जाय । गांव - १ ढोल, १ कमोल, १ सींघाड़, १ बोखंड़ा । घोघूंद भाखर उलै-कांनै 13 भाडेरथी कोस ४ उरे पूरबनूं । गांव दिखणनूंगांव अठै पार - बाहिरा 14 छै । औ निपट 15 वडा मगरा । टगरावती, झड़ोलरा मगरा, गढ आहोररा मगरा, नाहेसररा मगरा,
1
1 निवास, ठिकाना 12 सांसण ( शासन) = साधु ब्राह्मण आदिको किसी राजा या जागीरदारकी ओरसे प्रायः उसकी मृत्युके समय संकल्प करके दानमें दिये हुए खेत वा ग्राम आदि जिन पर उनका निजी शासन रहता है और उनसे किसी भी प्रकारका कर नहीं लिया जाता है । किन्तु यहां 'सांसण' शब्द दानमें दी हुई भूमिके अर्थमें व्यवहृत नहीं हुआ है । इस प्रकारको भूमिके भोक्ताओंसे तात्पर्य है । मँदिर, मठों आदिको पूजा आदि प्रबंध निरंतर चलते रहने के निमित्त एवं चारण, भाटों आदिको काव्य रचनाओं पर भेंट स्वरूप दी जाने वाली भूमि वा ग्राम भी 'सांसण' कहलाते हैं । कहीं-कहीं 'सांसण' और डोलीको, किचित् अंतर होते हुए भी एक ही मानते हैं । 3 खरवड़, चंदेल आदि राजपूत जो यहां रहते हैं (उन्हें राजपूत होने के नाते कोई मुआफी नहीं है) साधारण प्रजाकी भाँति भोग आदि कर देते हैं 14 गेहूं । 5 मध्य- पार्श्वमें 16 नाला । 7 उस ओर 18 चारों ओर आसपास । 9 जरगा पहाड़के ऊपर राजा हरिश्चन्द्र द्वारा स्थापित गुसांईकी ! चरण पादुका है । 10 विकट । 11 और 12 को। 13 इस ओर । 14. अपार । 15 अत्यन्त ।