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________________ - मुंहता नैणसीरी ख्यात पछै सं० १६८८ कुंडणो गांव पटै हुतो । १३ रामसिंघ । १२ मालदे नाराइणदासोत | ११ केसोदास भांगोत । १२ माधवदास केसवदासोत । वडो रजपूत । सं० १६८४ भवरांणी पटै थी गांव १०' | पछै मुं० जैमलसूं पंवार जैसे खांनाजंगी, माधोदासरो चाकर मुं० जैमल मारियो, तरै उठासूं छाड़ियो । सं० १७०० वळ श्रीजी वसियो" । गूंदवच पढ़ें, रेख रु० १६००० ) री ' । सं० १७१४ रा वैसाखमें उजेरण कांम आयो । १३ मुकुंददासनं गलणियो पटै । रेख रु० १६००० ) " । १३ हरिसिंघ । ११ कल्यांणदास भांणोत । १० उदैसिंघ अखैराजोत । [ २११ ११ सूरजमल सं० १६५७ पालीरो पटो सकतसिंघ भेळो हुतो' । सं० १६६५ सकतसिंघ मुवो तरै देवीदास भेळी दी' । पछै सं० १६७१ छांडियो | रांगारै वसियो' । सं० १६७३ वळ वसियो' | गांव ७ नवसरो पटै" । पलै सं० १६७४ देछू गांव ६ सूं पटै 1 १२ देवीदासनूं ग्राधी पाली हुती । १२ वणवीर सं० १६७७ भंवरी गांव २ पटै । 2 माधोदासका चाकर थी जिससे जैमलने 3 सं० १७०० में पुनः १६००० ) की रेखका I सं० १६८४में १० गांवोंके साथ भवराणी गांव पट्टेमें था । पँवार जैसा जिसके साथ मुंहता जैमलकी ग्रापसी लड़ाई ( शत्रुता उसको मार दिया, तव माधोदास जागीर छोड़ कर चला आया । श्री जीके ( महाराजा जसवंतसिंह के ) पास थाकर रहा । 4 रु० गूंदोज पट्टेमें दिया। 5 मुकंददासको रु० १६०००) की रेखका गलगिया गांव पट्टे में दिया । 6 सं० १६५७ में सूरजमलको सकर्ता सिंहके शामिल पालीका पट्टा था । 7 सं० १६६५ में सकतसिंह मर गया तब देवीदासके शामिल कर दी । 8 राणाके यहां या कर रह गया । 9 सं० १६७३ में पुन: यहां ( मारवाड़ में ) आ कर रह गया । 10 सात गांवोंके साथ नवसरा गांव पट्टे में दिया । )
SR No.010609
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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