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________________ १३२ ] मुंहता नैणसीरी ख्यात वारता गढ़वंधवरा धणियारी बांधवरो मुलक प्राद करणा-डहरियारो । नवलाख-डहर कहावै'। करणो-डहरियो मारै पेट थो । दिन पूरा हुआ तरै करणारी मा कस्टी । तरै जोतखियै कह्यो'--"हमार वेळा बुरी वहै छै । अ दोय घड़ी टळ, पछै छोरू हुवै तो महाराजा-प्रथीपत हुवै ।" प्रा. वात करणारी मा सुणी, तरै उण आपरा पग ऊंचा बंधाया' । सु वा तो मर गई', नै करणो घड़ी दोय पछै जीवतो जायो' । मोटो हुवो" । करणो वडो महाराजा हुवो । गंगा-जमुना वीच घणी धरती करणारे हुई । करण आपरी' मांरी वात सुणी-"म्हारै वास्तै म्हारी मा इतरो कस्ट सह्यो । इण भांत देह त्यागी।" तरै करण चोरासी तळाव नवा . खिणायनै एक दिन आपरी मारी वांस तर्पण किया । और ही घणा धरम किंया“ । करणारो राजथांन गढ़ कालंजर, प्रयागजीसू कोस ४० । छै त, हुतो। __ वाघेल-धरती वसी-लेनै' बंधवगढ़ राजथांन कियो। वरसिंघदे वाघेलो गुजरातसूं गंगाजीरी जात पायो हुतो। तद अठ बंधवरी ठोड़ निवळासा" लोधा' रजपूत रहता। ठोड़' खाली दीठी । तरै गंगाजीरा पुलण" मनोहर देखनै अठै रहणरी कीवी । लोधांनूं मारने ___I आदिमें वांधवदेशका अधिपति करना डहरिया था । डहरियोंकी संख्या वहां पर नौ लाख होनेके कारण वह प्रदेश 'नौ लाख डहर' कहलाता है। 2 करना डहरिया जव गर्भस्थ था। 3 गर्भके दिन पूरे हुए तव करनाकी माताको प्रसव-पीड़ा हुई। 4 तव ज्योतिपियोंने कहा। 5 इस समय लग्न-ग्रहादि अशुभ चल रहे हैं। 6 ये दो घड़ी निकल जाय पीर बादमें पुत्र उत्पन्न हो तो वह महाराजा और पृथ्वीपति होवे। 7 इस वातको करनाकी माताने सुना तव उसने उस लग्नमें प्रसव नहीं होने देनेके लिए अपने पांवोको ऊपर वंधवा ... लिये। 8 सो वह तो इस कप्टसे मर गई। 9 किन्तु करना दो घड़ी पश्चात जीवित उत्पन्न हुमा। 10 वयस्क हुआ। II अपनी। 12 खुदवाकर। 13 पितरोंकी संतुष्टिके लिये अंजलिम पानी के साथ यव तिल आदि भर कर जलदान देनेकी एक मृतक-क्रिया । पितयन। 14 और भी बहुतना पुण्य-दान किया । . 15 वाघेल वरसिंहदेने किसी भी प्रकार का कर नहीं लिये जानेकी छूट दी गई हो ऐसी वसी ( प्रजा) को बसा कर वांधवगढ़ स्थानमें अपनी राजधानी बनाई। 16 निवल जैसे। 17 लोघा राजपूतोंका एक वंश । ... IS स्थान। 19 सुन्दर तट-प्रदेश देख कर।
SR No.010609
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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