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( २ ) गई है। स्पष्ट है कि इन दोनों ही सूचियोंमें बहुतसे ग्रन्थ एवं ग्रन्थकारोंके, नाम अद्यावधि अन्यान्य संस्थानोंमें प्रकाशित ग्रन्थसूचियोंमें, विशेषतः राजस्थानी ग्रन्थ-सूचियोंमें नहीं पाये जाते हैं, जो अद्यतन अनुसंधित्सु विद्वानोंके लिए विशेष आवश्यक एवं उपयोगी हैं।
प्रतिष्ठानकी वर्द्धमान प्रगतिको देखते हुए यह भी उचित समझा गया है कि राज्यमें ततत् स्थानों पर उपलब्ध हस्तलिखित ग्रन्थ-संग्रहोंको भी इसी विभागके आयत कर दिया जावे। तदनुसार इन्द्रगढ़ पोथीखानेके २०६ ग्रन्थ प्रतिष्ठानमें प्राप्त हए हैं जिनकी सूची इसी भागके परिशिष्ट ३ में प्रकाशित की जा रही है। भविष्यमें भी ऐसे प्राप्त होने वाले सरकारी एवं व्यक्तिगत संग्रहोंकी सूचियाँ प्रतिष्ठान द्वारा प्रकाशित की जावेंगी।
इस सूची में समाविष्ट ग्रन्थोंके अाक्रमांक विशिष्ट परिचयान्त परिचय.पत्रक सन् १९५८ के नवम्बर मासमें ही श्री गोपालनारायण वहुरा एवं श्री लक्ष्मीनारायण गोस्वामी द्वारा भरे जा चुके थे, परन्तु दिसम्बर १६५८ में प्रतिष्ठानका स्थानान्तरण जोधपुरमें हो गया । यहाँ आकर व्यवस्था आदि करने में ५-६ मासका समय लगा । तदनतर पुन: जांच आदि करके प्रेस कापियाँ तैयार की गई और मुद्रण चालू करवाया गया। इस पुस्तक का सम्पादन हमारे निर्देशन में विभाग के उप संचालक श्री गोपालनारायण बहुराने किया तथा परिचय पत्रकांकन, प्रेस कॉपी लेखन, नामानुक्रमणिका और परिशिष्टादि संकलन और प्रूफ-संशोधनादि कार्य में सर्व श्री पुरुषोत्तमलाल मेनारिया, लक्ष्मीनारायण गोस्वामी, रमानन्द सारस्वत, स्वर्गीय विश्वेश्वरदत्त द्विवेदी प्रभतिने भो यथेष्ट सहयोग दिया।
आशा है, इस प्रकाशनसे विद्वज्जन एवं पुरासाहित्यानुसंधित्सु लाभान्वित . होंगे।
राज० प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, )
- जोधपुर दि० २६-७-६०
मुनि जिनविजय सम्मान्य सञ्चालक