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हस्तलिखित ग्रन्थ-सूची, भाग-२, परिशिष्ट १ ]
[ ३१५ कवियण नरसां निधि करण, दूर हरण अग्न्यांन ।
चरण सरण उपम धरण, उपावण गुण ग्यांन ॥ २ . । अन्त- वाचक गुणवर्धन सुषदाया, श्रीसोमगणि सुपसाया जी ।। इम जिनहरष पुण्य गुण गाया, तीस ढाल सुष पाया जी ॥ १४
हिव राजानि सुण गुरवाणी ॥ इति श्रीपुण्यविषये विद्याविलासचोपई संपूर्ण ॥ सं० १८२६ वर्षे मितिः आसाढ सुदि ७ दिने । ६११. ७७२२ (१४) वीरमदे ईडरिया आदिके कवित्त
आदि- ॥ श्रीगणेशाय न (मः) । कवित्त- गढत लंक दईवत संक झंकत अहिराइण ।
धनत धीन अहि वेलत पान पेधत पत्राइण ।। अमरत पास माया तपास रस होइ महा जल । परमा वात सोवन धात चितत वेगागल ॥ अगराइ चाइ एकागवै सालिहांतर दिठो सवे ।
त्रिहुं राइ तिलक नारियेण तना दाता तो वीरमदे ॥ अन्त- कर परि जिण गिरवर धरयौ, मथुरा मारचौ कंस ।
रेषा राषस निरदले, जयकारी जदुवंस ॥ १०
श्रीठाकुरांरी साषी छ ।। लिषतं मिश्र आनंदराम ॥ शुभमस्तु ।। ६१५. ७७४३ (४)
वेदस्तुति भाषा ग्रादि- ॥श्रीरामजी।। अथ बेदस्तुता भाषा लीप्यते ॥ राजश्री राजैसीधजी संभाषतं ।। छंद- श्री भागोतं दसम सकंध, वेद सतुत्स भाषा बंध ॥
___ अती आनंदं भव बंध छेदं, आवागमन मिटै भ्रम पेदं । चोपई- श्रीसुषदेव ब्रह्म ततुवज्ञाता । वेदव्यासके पुत्र विष्याता ॥
तीनके पदवंदन मै करु । तीनको ध्यान हीरदैमै धरु ॥ अन्त- नीतीप्रती पाठ जु जे करै, बुपजै ब्रम ज्ञान ।
___ तत पद नीहचे पाय है, राजै प्रम बीज्ञान ॥ ६०
ईति श्रीबेदसतुती भाषा प्ररथ सपुरण ॥ कथीतं म्हाराज श्रीराजैसीधजी ।। ६७५. ४०१०
शुकबहोतरी ___ आदि- दि०।। श्रीगणेशाय नमः ॥ अथ वात सूवावहुत्तरी लिप्यते । दूहा- करि प्रणांम श्री सारदा, अपनी बुध परमांन ।
सुक शप्त वार्ता उ करो, न्यायते देवी दांन ।। १ विक्रम नगर सुहामणो, सुष संपतकी ठोर ।
हिंदू थान ऽरु हिंदू धरम, पैसो सहर न और ॥२ "अन्त- "हरदत्त सेठ होम करायौ तिहां सारिका पिण आई। परसं दिव्यमाला । पडी। उणारे दर्शन सेती सराप छूट शुकशारिका गंधर्व होय आपण लोक गया।