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सञ्चालकीय वक्तव्य
जयपुरनिवासी, विश्रुतकीर्ति, शोधविद्वान् स्वर्गीय पुरोहित श्रीहरिनारायणजी विद्याभूषण द्वारा संगृहीत 'विद्याभूषण ग्रन्थ-संग्रह'की सूचीको इस विभागके द्वारा प्रकाशित किया जा रहा है। श्रीविद्याभूषणजीने अपने जीवनकालमें अदम्य उत्साह एवं संलग्नतासे अमूल्य ग्रन्थरत्नोंका संग्रह किया था जो पुरातत्त्वजिज्ञासुओंके लिए उपादेय है। इस संग्रहको श्रीविद्याभूषणजीके दिवंगत होने पर उनकी अक्षय कीर्तिकामना रखते हुए श्रीयुत् रामगोपालजी पुरोहित, बी. ए., एल-एल. बी. (श्रीविद्याभूषणजीके पात्मज)ने किसी ऐसी संस्थाको देना संकल्पित किया, जहां निरन्तर इसका उपयोग भावी शोधकारों द्वारा किया जा सके । इसी उद्देश्यसे प्रेरित वह एक दिन हमारे कार्यालय (पुरातत्त्वमन्दिर, जयपुर) में उपस्थित हुए। यहांकी प्राचीन ग्रन्थोंकी सुरक्षा, सम्पादन एवं प्रकाशन सम्बन्धिनी व्यवस्थासे प्रभावित हो कर उन्होंने अनुभव किया कि विद्याभूषण-ग्रन्थ-संग्रहका सही उपयोग इसी प्रतिष्ठान द्वारा भली प्रकार किया जा सकेगा। इसके तुरन्त बाद ही 'शुभस्यशीघ्रम्'को चरितार्थ करते हुए उन्होंने उक्त संग्रह इस कार्यालय में भिजवा दिया और दिनांक २१-२-१९५७को एक पत्र मुझे लिख कर सूचित किया कि "मेरे स्वर्गीय पितृचरणका कार्यक्षेत्र जयपुर ही रहा है और सौभाग्यसे अब यहीं पर पुरातत्त्व मन्दिर जैसी शोधसंस्था कार्य कर रही है अतएव मेरी उत्कट अभिलाषा है कि आप उनके विद्याभूषण ग्रन्थ-संग्रहको एक उप संग्रहके समान अपने ही विभागमें सुरक्षित रख लें ताकि स्वर्गीय विद्याभूषणजीका यशःशरीर शोधविद्वानोंके
अधिकाधिक काम आ सके । .... इस सम्बन्धमें राजस्थान सरकारको विधिवत् स्वीकृतिके लिए
लिखा गया और आदेश सं. डी. १००६७, एफ. ६ (२) एज्यू. बी. ५१ . दिनांक १९ जुलाई १९६० द्वारा सरकारने उक्त संग्रहको इस विभागके
अधिकारमें लेना स्वीकृत कर लिया। यह भी निश्चय किया गया कि