SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ +etterstoo १०. माजेव - ससार मे आने वाले,प्रत्येक प्राणी के समक्ष दो मार्ग हैऋजु और वक्र । -मोक्ष-मार्ग को ऋजु मार्ग और नाना विध घुमाओ से भरे सासारिकता के मार्ग को वक्र मार्ग कहा जाता है.। मोक्ष मार्ग पर निष्कपटता.से. ही प्रगति हो सकती है, जिनके मन में पाप की घुडी विद्यमान है.वे इस मार्ग पर बढ नही सकते। ससार-मार्ग पर चलने वाले प्राय कपट का आश्रय लेकर ही चलते हैं, क्योकि सासारिक लोगो की यह धारणा है कि निष्कपट व्यक्ति का ससार-पथ पर चलना अति कठिन है। निष्कपटता ही आर्जव है, प्रार्जव का सीधा सम्पर्क सत्य से है। सत्य और आर्जव इन का परस्पर अनादि सम्बन्ध है। जहा आजव है वही सत्य है, जहां सत्य है वही आर्जव है। ये दोनो गुण ज्ञान की तरह प्रकाशमान हैं, इनके होते हुए अज्ञान या दोप मन के किसी कोने मे छिपे नहीं रह सकते। अज्ञान, असत्य और कपट इनकी विद्यमानता मे सभी बुराइया और सभी दोप पनपते है तथा खूब लहलहाते हैं और मन-मोहक ऐसे विपैले फल देते है जिनके सेवन करने से साधक विराधक बनकर दुर्गतियो एव दुखो से घिर जाता है। आर्जव गुण के आगे पाप टिक नही सकते। जिस समय योग एक चिन्तन.] [ ३९
SR No.010605
Book TitleYog Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman, Tilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy