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________________ ६. तितिक्षा साधक के लिये सहनशील होना भी अनिवार्य है । तितिक्षा का अर्थ है - किसी के द्वारा किए गए दुर्व्यवहार को शान्त भाव से एक वार नही अनेक बार सहन करना । जब कोई गाली के रूप मे श्रमगल शब्द बोल रहा हो, या मार-पीट कर रहा हो, तव प्राय क्रोध ग्रा ही जाता है, उस समय मन की शान्ति को भग न होने देना, किसी के द्वारा परीपहो या उपसर्गों के निरत दिये जाने पर भी मन मे उसके प्रति रोष न आने देना, मन से भी 1 1 ऐसे व्यक्ति का श्रमगल न सोचना, न श्रमगलवाणी बोलना और उसके लिए श्रमगल कार्य करना न तितिक्षा है | निर्वात स्थान मे रखे हुए दीपक की लो जैसे स्थिर रह कर प्रखण्ड प्रकाश देती है वैसे ही गहरी शान्ति मे प्रवेश करके बाहर से होने वाले प्रहारो को, गाली या निन्दनीय शब्दो को सुनकर स्थिर रहते हुए शत्रु और मित्र दोनो को समान प्रकाश देता हुआ धर्म ध्यान मे अवस्थित रहे यही साधक का परम कर्त्तव्य है । सहनशीलता धर्म का प्रमुख ग है, क्योकि धर्म-भाव मानव को कष्ट सहन करने की शक्ति देता है । can } तितिक्षा चार प्रकार की होती है (क) कुछ साधक बाहर से तो सहनशील बने रहते है, योग एक चिन्तन ] दय JAI मामा /. ANS क्षत्र 7 [ ३७ 1" MU D
SR No.010605
Book TitleYog Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman, Tilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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