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________________ १३ शरीर को स्वस्थ, वाणी को पवित्र और मन को एकाग्र रखना । १४ नि गल्य होकर पांच प्राचारो का पालन करना । १५ विनीत बनना-मान रहित होना। १६ सब तरह की दीनता से रहित होकर धैर्य-सम्पन्न होना ही वृति-मति है। १७ कर्म-बन्धन से मुक्त होने की अभिलाषा रखना। १८ सयम और तप मे कपट न करना। १६. विधि-पूर्वक सद्-अनुष्ठान करना। २०. सवर अर्थात् सभी पाश्रवो का निरोध करना। २१ आत्मगत दोपो को दूर करने का प्रयास करना। २२ इन्द्रियो के सभी विपयो से विमुख होना, अर्थात् सर्व-काम विरक्तता को जीवन मे उतारना। . २३ मूलगुण-प्रत्यास्यान अर्थात् जिस त्याग से मूलगुण विकसित हो ऐसा माचरण करना। २४. उत्तरगुण प्रत्याख्यान, अर्थात् उत्तरगुण के वधिक दोपो का त्याग करना। २५ व्युत्सर्ग अर्थात् कायोत्सर्ग का अभ्यास करना । २६. प्राच्यात्मिक साधना मे क्षण मात्र भी प्रमाद न करना । २७ जीवन के प्रत्येक क्षण मे समाचारी का पालन करना। २८. धर्म-ध्यान द्वारा योगो का निरोध करना, ध्यान सवर-योग है। योग . एक चिन्तन
SR No.010605
Book TitleYog Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman, Tilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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