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________________ . . २४. स्मरण भगवान के गुणों का स्मरण करना,महापुल्पो को उत्तम गति कैसे प्राप्त हुई ? सीखी हुई या पढी हुई शिक्षाग्रो को पुन पुन. याद करना मानव-धम है। मानवेतर प्राणियो मे स्मरण रूप विशेषता भी नहीं पाई जाती है। २५. लोक-सेवा जनता-भगवती की सेवा करना ही भगवान की सेवा हैं। जनता के लिये रोटी, कपडा, मकान आदि का प्रवन्ध करना, विद्यालय, चिकित्सालय, प्रशिक्षणालय खोलना, वेरोजगारो को किसी कारोवार मे लगाना, अनाथ, वृद्ध, अपाङ्गो को सुख-सुविधा की व्यवस्था करना, शत्रु-राज्यों के आक्रमणो से जनता की रक्षाव्यवस्था करना, चोर-डाकुओं से जनता को बचाना, जिन कारणो से जनता की पाप-वृत्ति हट जाए वैसी व्यवस्था करना, लोक-सेवा है। जन-सेवा मानव ही करता है। मानवता ही मानव-धर्म है। मानवता से ही मानव महान् बनता है। २६. इज्या यज् धातु-देवपूजा, सगतिकरण और दान अर्थ मे प्रयुक्त होती हैं। यज् का सप्रसारण रूप इज्या बनता है । देवपूजा-धर्मदेव और देवाधिदेव इनको क्रमश, श्रमण निग्रन्थ और, तीर्थङ्कर या. अरिहन्त भगवान भी कहते हैं । पूजा का अर्थ है--सत्कार बहुमान करना। मन मे श्रद्धा, वाणी से स्तुति और काय से प्राज्ञा-पालन, इन तीनो के समन्वय को पूजा कहते हैं। अपने और दूसरो के लिये कल्याणकारी साधनो को जुटाना संगतिकरण है। धर्म-दान, २५०] [ योग एक चिन्तन
SR No.010605
Book TitleYog Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman, Tilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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