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________________ नियत्रित करना, बहिर्मुखी से अन्तर्मखी बनाना दम कहलाता है। जैसे घोडे को लगाम से वश मे किया जाता है वैसे ही इन्द्रियों को दम-नीति से नियत्रित किया जाता है। उन्हे उद्दण्ड एव उच्छ खेल न होने देना मानवता है। ।- 2 ८. अहिंसा । हिंसा न करना ही अहिसा है। सकल्प-पूर्वक या जान-बूझ कर किसी भी निरपराधी छोटे-बड़े प्राणी को मारना हिंसा है। मानसिक हिसा, वाचिक हिंसा और कायिक हिंसा से निवृत्त होना अहिंसा है। अहिंसा भी दो प्रकार की होती है एक द्रव्यत अहिंसा और दूसरी भावत अहिंसा । किसी के प्राणो को न लूटना, उसे व्यथा न पहुचाना, द्रव्यत अहिंसा है। राग-द्वष से अलग रहना भावत अहिंसा है। दूसरो के प्राणो की रक्षा करना भी मानवता है और रागद्वेप से अपने को अलग रखनी भी मानता है। अहिंसा के बिना मानवता पनप नही सकती। इसका पालन मानव ही कर सकता है, अत इसे भी मानव-धर्म कहा गया है । ह. ब्रह्मचर्य सदाचार का पालन मानव ही कर सकता है, ब्रह्मचर्य मानवता के साथ ही पनपता है। एक पत्नीव्रत का पालन करना भी कथचित् ब्रह्मचर्य है, क्योकि उसमे सतोष की प्रधानता होती है और दुराचारी वृत्तियों के दमन का भाव होता है। इसके अतिरिक्त ब्रह्म में लीन होने के जितने भी उपाय हैं उन सब का २४२] [योग एक चिन्तन
SR No.010605
Book TitleYog Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman, Tilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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