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न्तिक आराधना हो पाए, तभी में पाराधक बन सकूगा इस उद्देश्य को लेकर शुद्ध भाव से सथारा किया जाता है।
मरण-काल को जानने के अनेक उपाय है। पाठको की जान कारी के लिए कुछ एक उपाय प्रदर्शित किए जाते है
१. किसी विशिष्ट ज्ञानी के कहने से मरण-काल का जान होता है।
२. किसी सुअवसर पर देव दर्शन करने के अनन्तर देववाणी से भी मृत्यु काल का ज्ञान हो जाता है ।
३ मृत्यु-सूचक किसी स्वप्न द्वारा भी मृत्यु का ज्ञान हो जाता है।
४ जन्म कुण्डली मे किसी विशिष्ट योग से भी आयु की पूर्णता का ज्ञान हो सकता है ।
५ किसी शकुन या अपशकुन से भी मरण-काल का ज्ञान हो सकता है। - ६ अपने ही परिपक्व अनुभव ज्ञान से भी अपनी मृत्यु का ज्ञान हो सकता है।
७ अपने दाहिने हाथ को नाक की सोध मे सिर पर रखकर कलाई को देखना चाहिये, य द कलाई पतली दोखे तो उत्तम है, यदि वीच से छिन्न होकर दीखे तो मरण-काल निकट समझना चाहिये।
८ पाखे बन्द करने पर जो प्रकाश दिखाई देता है, यदि वह न दिखाई दे, तो मरणकाल निकट समझना चाहिये।
नाक के अग्र भाग को प्रतिदिन देखना चाहिये । जब २१२]
[ योग . एक चिन्तन