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________________ है। शेप तप के भेद इसी की सिद्धि के लिए किए जाते हैं। धर्म के दस-भेद-उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम मुक्ति, उत्तम तप, उत्तम सयम, उत्तम सत्य, उत्तम शौचा-अन्त करण शुद्धि, उत्तम अपरिग्रह और उत्तम ब्रह्मचर्य । इस प्रकार धर्म के अनेक-अनेक भेद हो सकते हैं। ध्यान का अर्थ है-ध्येय में नन्मय हो जाना। ध्यान-योग मे तीन वार्ते मुख्य हैं-चित्त की एकाग्रता के लिए उपयुक्त जीवन की परिमितता और साम्यदशा, अभ्यास और वैराग्य । इन से ध्यान की सिद्धि होती हैं। इन मे से वैरग्यि विध्वंसक क्रिया है और अभ्यास विधायक क्रिया है। खेत से घास उखाडकर फेकना विध्वंसक क्रिया है, उसमे वीज बोना विधायक कार्य है। वैराग्य अन्त करण मे रहे हुए मोहतत्त्व को उखाड़ कर बाहर फैक देता हैं, जबकि अभ्यास ध्येय को पाने के लिए ध्याता को सहयोग देता है । प्रतिध्यान और रौंद्रध्यान की निवृत्ति एव व्यावृत्ति के लिए ध्यान के साथ धर्म गब्द जोडा गया है। इसका अर्थ होता हैं-धर्म का ध्यान, धर्म मे ध्यान अथवा जो व्यान धर्म से प्रोतप्रोत हो उसे धर्म-ध्यान कहा जाता है। धर्म-ध्यान के मुख्य चार भेद हैं, जिन मे धर्म के सभी भेदो का समावेश हो जाता है। उनका सक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है - १ आज्ञा-विचय-तीर्थङ्कर भगवान की आज्ञा क्या है ? उन्होने ऐसी आजा क्यो दी है? इस विषय पर विचार, गवेषणा योग एक चिन्तन ] [ १५५
SR No.010605
Book TitleYog Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman, Tilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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