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________________ २२. सर्व-काम-विरक्तता - प्रत्येक शब्द श्रनेकार्थक है, इसमे दो मत नही हो सकते । काम शब्द भी अनेकार्थक है, और यह प्रसगानुसार दो अर्थो मे रूढ है - इच्छा और कामवासना । प्रशसा, धागा, तृष्णा, वाळा, काम, ये सब इच्छा के ही अपर नाम हैं । इच्छाओ का सम्बन्ध प्राय जड चेतन पदार्थों से है । इच्छाए आकाश के समान अनत -हैं, उनकी कोई सीमा नही है । ! इच्छा और मूर्छा दोनो परिग्रह के अग है । परिग्रह की अपेक्षा, इच्छा महती है । इच्छा को शास्त्रकारो ने दस भागो मे विभक्त कर दिया है । प्रत्येक भाग मे भी इच्छा के अनेक रूप हो सकते हैं जैसे कि - == 7 1 ५ १ इहलोकाशसा प्रयोग — इस लोक से जिस इच्छा का सम्बन्ध है, वह इहलोक - प्रागसा है। जब यह प्राशसा बलवती हो जाती है, तब उस आगसा के साथ 'प्रयोग' शब्द का निवेश कर ' दिया जाता है । इच्छा करनेवाला जीव जिस भव में है, उसी से ' मिलता-जुलता भव मृत्यु के बाद भी प्राप्त हो तथा शरीर बल, 'रूप, सुख, सत्ता समृद्धि इत्यादि लौकिक वैभव से समृद्ध भव की कामना करना 'इह लोक प्राशसा प्रयोग है । t 1 १०६ ] ( 7 २. परलोकाशंसा - प्रयोग - जिस इच्छा का सम्बन्ध परलोक [ योग एक चिन्तन •
SR No.010605
Book TitleYog Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman, Tilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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