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________________ 'इम कपाय के चार भेद है-अनन्तानुबधी 'क्रोध, अनन्तानवंबी मान, अनन्तानवधी माया और अनन्तानबंधी लोभ । इनका पृथक्-पृथक स्वरूप इस प्रकार है क्रोध का स्वभाव है प्रीति और प्रेम मे दरारे पैदा कर देना। इनमे से कुछ दरारे कालान्तर मे स्वय मिल जाती हैं और कुछ उपायो द्वारा मिलाकर एक करनी पड़ती है। कुछ दरारे ऐसी भी होती है जो विल्कुल भी नही मिट सकती। किसी ज्वालामुखी पर्वत के फट जाने से जो पर्वत मे दरारे पड़ जाती है, उन दरारो का मिलाना जैसे अशक्य है, वैसे ही जीवन भर अनेक उपाय करने पर भी जिसका क्रोध पून. शान्त होता हो नही, वह प्रेम की भूमि में दरारे ही दरारे डालता जाता है। जिससे उत्पन्न. दुप मानव को अशान्त कर देता है। ऐसे क्रोध का शमन करना अशक्य ही होता है। ' मान को स्वभाव है अकड-कठोरता। मन मे, गरीर मे तथा वाणी मे कठोरता का होना यह प्रमाणित करता है कि वह व्यक्ति दूसरे को मान सन्मान करना जानता ही नहीं है ।। मान के प्रवेश होते ही दूसरो के प्रति कठोर व्यवहार स्वभावत होने लग जाता है। जिसका मान किसी भी उपाय से नही नमता, वह कठोर पत्थर के खभे के समान होता है, उसे कोई भी यत्र या उपाय मोड नहीं दे सकता। - माया मे वक्रता एवं कुटिलता होती है। आन्तरिक छल-बल मित्रता का नाश कर देता है । जैसे कठिन बास को जड का टेढापन किसी भी उपाय से दूर नही किया जा सकता, वैसे ही माया की वक्रता को समाप्त नहीं किया जा सकता। वक्रता उसका अभिन्न अङ्ग है। ९८] योग एक चिन्तन ]
SR No.010605
Book TitleYog Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman, Tilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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