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________________ - २०. संवर शब्दो का प्रवाह पक्ष और विपक्ष को लेकर द्वन्द्वात्मक रूप धारण करके चलता है, जैसे जीव और अजीव, पुण्य और पाप, आश्रव और सवर , बन्ध और मोक्ष, आत्मा और परमात्मा, ज्ञान और अज्ञान इत्यादि । आश्रव और सवर का भी अपना द्वन्द्वात्मक रूप है। कर्म-बन्ध के हेतुप्रो मे प्रवृत्ति करना प्राश्रव है और आश्रवो का निरोध सवर है। सवर पाच प्रकार का होता है। सम्यग्दर्शन-सवर, व्रतसवर, अप्रमाद-सवर, अकषाय-सवर और प्रशस्त-योग या योगनिरोध सवर । संवर के इन पाच भेदो मे सवर के सभी भेदो का समावेश हो जाता है। __ सबर को समझने से पहले आश्रव को समझना ज़रूरी है, क्योकि जब तक आश्रव को न समझा जाएगा, तब तक निरोध किसका किया जाएगा ? 'जैसे अमृत को समझने से पहले विष के स्वरूप को समझना अनिवार्य हो जाता है, तत्पश्चात् ही अमृत के महत्व को यथातथ्य ज्ञान का विषय बनाया जा सकता है। आश्रवो का विवेचन निम्नलिखित है १ मिथ्यात्द-तत्त्व से विपरीत श्रद्धा ही ,मिथ्यात्व या मिथ्यादर्शन है। जैसे जीव को अजीव समझना, बकरी, गाय, योग . एक चिन्तन ] [८९
SR No.010605
Book TitleYog Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman, Tilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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