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________________ १२. कलह-डमर वज्जिए-~विनीत शिष्य किसी के साथ न वचन से कलह एव झगडा करता है और न हाथापाई करता है । १३ बुद्ध अभिजाइए-सुविनीत शिष्य तत्त्व को जानने वाला एव लिए हुए सयम भार का निर्वाह करने वाला होता है। अभिजाति का अर्थ है कुलीनता। कुलीन वही है जो धारण को हुई मर्यादाओ का जीवन भर पालन करता है। १४. हिरिम-सुविनीत गिष्य लज्जावान होता है। लज्जा एक तरह का मानसिक सकोच है, जो अनुचित कार्य करने मे लजाता हो वह लज्जावान् कहलाता है । लज्जा भी सयम का एक मुख्य अग है। वह भी कभी-कभी मनुष्य का उद्धार कर देता है, अत साधक का लज्जावान् होना भी आवश्यक है। १५ पडिसलोणे --जो इन्द्रियो और मन का सगोपन करने वाला होता है । किसी भी सभ्य व्यक्ति को निष्प्रयोजन दिन भर इधर-उधर नही फिरते रहना चाहिए। प्रतिमलोन शब्द के द्वारा इमी पाचरण की शिक्षा दी गई है । सुविनीत व्यक्ति हो गुणो से समृद्व होता है । जो इन पद्रह गुणो से मपन्न है वही बुद्धिमान व्यक्ति सुविनीत कहलाता है। जिसमे विनय और सुविनीत के सभी लक्षण एव गुण पाए जाते है वह निश्चय ही सम्यग्दृष्टि एव रत्नत्रय का पाराधक है, वही श्रुतज्ञान का बहुमुखी विकास करता हुआ वहुश्रुत की कोटि मे पहुच जाता है। तीर्थकर महावीर ने बहुश्रुत को सर्वोत्तम सोलह उपमानो से उपमित किया है। बहुश्रुत मुनि अपना और दूसरो का कल्याण करता हुया यथाशीघ्र कर्मों के वधन से मुक्त हो जाता है। अत ७८ ] [योग एक चिन्तन
SR No.010605
Book TitleYog Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman, Tilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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