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________________ उसकी मान्यता है कि देव, दानव, राजा-रक, हाथी, घोडा, कौमा, गरुड, गाय शृगाल कुत्ता, और तापस आदि को नमस्कार करने से क्लेशो का नाश होता है, क्योकि विश्व के सभी प्राणी ब्रह्म के ही रूप है, अत इनकी विनयभक्ति करने से मोक्ष-प्राप्ति भी हो सकती है । जैन दर्शन इस विनयवाद को बिल्कुल नही स्वीकार करता, क्योकि असयमियो की विनय धर्म का अग नहीं बन सकती। विनय-सम्पन्न व्यक्ति को विनीत और जो विनीतो मे भी श्रेष्ठ है उसे सुविनीत कहते है । सुविनीत मे ही पन्द्रह गुण होते है । सुविनीत मे विनय के सभी गुण पाए जाते हैं । सुविनीत का जीवनस्तर लोगो के जीवन-स्तर से बहुत ऊचा होता है। यदि उसे छद्मस्थो मे सर्वगुणसम्पन्न कहा जाए तो अनुचित न होगा। वे पन्द्रह गुण निम्नलिखित है। १ नीयावत्ती-जो सब के साथ नम्र व्यवहार करता है वह सुविनीत है । जो शिष्य न तो गुरु से ऊची शय्या पर बैठता है, न गुरु के आगे चलता है, न समकक्ष चलता है,पीछे भी न अति दूर न अति निकट चलता है, नीचे बैठता है, मस्तक झुका कर प्रणाम करता है, बडी नम्रता से सशय-निवृत्ति के हेतु गुरु से पूछता है, यदि कभी असावधानी से गुरु के शरीर या उपकरणो के साथ सघट्टा लग भी जाए तो तत्काल क्षमा-याचना करता है और अपनी भूल स्वीकार करता है, भविष्य मे ऐसी भूल कभी नही होगी यह विश्वास दिलाता है, वही शिष्य सुविनीत है। २ अचवले-सुविनीत चपल नहीं होता। गति, स्थान, भापा और भाव की अपेक्षा से चपल व्यक्ति चार प्रकार के होते हैयोग एक चिन्तन ] [७५
SR No.010605
Book TitleYog Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman, Tilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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