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वांकीदासरी ख्यात
[१९७-५१२ ४९७ देवीसिंघजी वगरै पकडिया ज्यानू रस्सासू वाध भोजनमाळा हेटली ओरिया
ज्यामे घालिया हाथा - पगामे वेडी तोखीर कडिया आयी नही जद कडिया
मोटी घडाय आरा हाथ - पगा माह घाली । ४९८ देवीसिंघरा हाथ धायभाई जगजी पकडिया कटार - तरवार ग्वीची फनै
खोस लिवी। ४९९ देवीसिंघ प्रभुखारा हाथ - पग लोहरा बघणरी कडिया घडागी पहला आंनूं
भोजनसाळा हेटली ओरिया माहे राग्विया हुता। - ५०० देवीसिंघ महासिंघोत ने पकडाणो जद वोलियो - मै गढमे किवी जिसी गढ
मोमे किवी। ५०१ ऊदावत केहरसिंघरै गळामे भमरकडी रहती नित्य सेर पक्की खीचडी खातो
हमै पालकीखानो है जठे कैदमे हुतो अढारोतर देवलोक हुवो। ५०२ ऊदावत केसरीसिंघजीरा गळामे भवरकडी रहती पालखीखानामे कैद रहता.
सेर पक्कारी निन खीचडी खाना सवत १८१८रै रामसरण हुवा। ५०३. ऊदावत केहरसिंघरा गळारा तोखरी कडीरी साकळ भुरसमे दिवी हुती। ५.०४ केहरसिंघ ऊदावतरै गळारी तोखरी कडी भुरसमे दिवी हुती। ५०५ प्रथम तेईस, पछै अठाईसै, तीजक फेर छतीस, चौथा फेर तयाळीस-जुमल
च्यार नाथजीदुवारै वडा महाराज पधारिया । ५०६ अक बार कोटारा महाराज गुमानसिघजीसू श्रीजी दुवारै मिलबो हुवो। ५०७ सवत् १८३७ रा मिगसरमे चौवारी राड हुई नै सवत् १८३८ रा मिगसरमे
__ अमरकोट रसद पहुची सिंधियासू राड हुई । ५०८ सवत् १८३० महाराज विजैसिघजी गयारी गास मारी छोडी। ५०९ लखणेऊरै धगी मनसूरअलीखा विजैसिंघजीने लिखियो-गुलाबरो अतर
लिखतो मेलो तिणरै लगावजै नही अखरैरा अतर लगावजै यूहीज कियो। ५१० वडा महाराज सूरजमल सोभागसिंघोतनै फुरमाया-भीवसिंघजी महर
अपणायो जद थारा बडेरा तो महाराज रामसिंघजी तो गेला रता ज्यारो ही परी लाग न कियो म्हे तो सयाणा हा इण अरज किवी - खानजादरा
घड माथै माधोसिंघजी तो मैं चरण खानाजाद छोडसी नही ।। ५११ राजाधिराजरै सात पलारो वागो माहे रहतो, अठ्यारै पलारो ऊपर रहतो। ५१२ महाराज विजैसिंघजीरै अठ्यारै पलांरो माहे रहतो, इकवीस पलारो ऊपर
रहतो ।