________________
१८०
व्यक्तित्व और कृतित्व भाव, भापा और शैली की दृष्टि से यह सम्पादन बहुत ही सुन्दर वन पड़ा है। इस सम्पादन के विषय में कवि श्री जी ने स्वयं लिखा है
___ "प्राचार्य श्री आत्माराम जी महाराज के 'दशवकालिक सूत्र' का कुछ वर्ष हुए, मैंने सम्पादन किया था। वह सम्पादन प्रयत्न से कहिए अयवा भाग्य से बहुत कुछ सुन्दर हुअा है। अतएव पाठकों को पसन्द भी ग्राशा से अधिक आया है।"
इस पर से यह भली-भांति ज्ञात हो जाता है कि कवि श्री जी आज नहीं, आज से वहुत पहले भी सुयोग्य सम्पादक थे । उनके सम्पादन से लेखक तथा पाठक दोनों सन्तुष्ट रहते थे। सच पूछा जाए, तो किसी भी सम्पादन की सफलता की सबसे बड़ी कसौटी भी यही है।
__ परमात्न मार्ग-दर्शक-प्रस्तुत ग्रन्थ के लेखक पूज्य श्री अमोलक ऋपि जी महाराज हैं । यह ग्रन्थ वड़े साइज में है और पृ संख्या चारसौ तीस है। इस ग्रन्थ का सम्पादन कवि श्री जी ने महेन्द्रगढ़ में किया था। लेखक ने सम्पादन के सम्बन्ध में अपने ग्रन्थ की भूमिका में इस प्रकार लिखा है
"प्रस्तुत ग्रन्थ के सम्पादन का समस्त भार कविराज सिद्धहस्त लेखक, प्राकृत एवं संस्कृत के मान्य विद्वान, मुनि.श्री अमरचन्द्र जी को सौंपा गया। मुनि श्री ने निरवकाश होते हुए भी भापा-संशोधन, प्रूफसंशोधन एवं आवश्यक संशोधन आदि कार्य अत्यन्त परिश्रम उठाकर बड़ी योग्यता के साथ किया। इसके लिए मैं आप श्री (कवि जी महाराज) का अन्तःकरण से आभार मानकर सहस्रशः धन्यवाद देता हूँ।"
जीवन-चरित्र-प्रस्तुत पुस्तक गणी श्री उदयचन्द्र जी महाराज का जीवन-चरित्र है। इसका सम्पादन कवि श्री जी ने अपने दिल्ली के वावास में किया था। भाव, भाषा और शैली की दृष्टि से यह पुरतक अपने ढंग की एक है। यह पुस्तक तीन-सौ पाँच पृष्ठों में समाप्त हुई है। इतनी बड़ी पुस्तक का इतने अल्प-काल में सम्पादन करना साधारण बात नहीं है। पुरतक के सम्पादन के सम्बन्ध में लेखक ने इस प्रकार लिखा है
"प्रस्तुत जीवन-चरित्र का सम्पादन हमारे महामान्य उपाध्याय कविरत्न पण्डित गुनि श्री अमरचन्द्र जी महाराज के हाथों हुया है। उपाध्याय श्री जैन-संसार में एक उच्च एवं प्रतिष्ठित विद्वान् माने जाते