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प्रतिक्रमण सूत्र ।
भावार्थ--[ श्रीमहावीर-स्तुति ] मैं भगवान् महावीर को नमन करता हूं। जल जिस प्रकार दावानल के सन्ताप को शान्त करता है उसी प्रकार भगवान् संसार के सन्ताप को शान्त करते हैं, हवा जिस प्रकार धूलि को उड़ा देती है उसी प्रकार भगवान् भी मोह को नष्ट कर देते हैं; जिस प्रकार पैना हल पृथ्वी को खोद डालता है उसी प्रकार भगवान् माया को उखाड़ फेंकते हैं और जिस प्रकार सुमेरु चलित नहीं होता उसी प्रकार अति धीरज के कारण भगवान् भी चलित नहीं होते ॥ १ ॥
भावावनागसुग्दानपमानवेन, चूलाविलोलकमलावलिमालितानि । संपूरिताभिनतलोकसमाहितानि,
कामं नमामि जिनराज-पदानि तानि ॥२॥ अन्वयार्थ ..' सादावनाम ' भाव पूर्वक नमन करने वाले ' सुरदानवमानवेन' देव, दानव और मनुष्य के स्वामियों के — चूलाविलोलकमलावलिमालितानि' मुकुटों में वर्तमान चञ्चल कमलों की पङ्क्ति से सुशोभित, [ और ] 'संपूरिता• भिनतलोकसाहितानि' नमे हुए लोगों की कामनाओं को पूर्ण करने वाले, 'तानि' प्रसिद्ध 'जिनराज पदानि' जिनेश्वर के चरणों को 'काम' अत्यन्त 'नमामि' नमन करता हूँ ॥२॥
भावार्थ---[ सकल-जिन की स्तुति ] भक्ति पूर्वक नमन करने वाले देवेन्द्रों, दानवेन्द्रों और नरेन्द्रों के मुकुटों की कोमल