________________
प्रतिक्रमण सूत्र ।
अन्वयार्थ – 'कम्म-घण-मुक्कं कर्मों के समूह से छुटे हुए 'विसहरविस-निन्नासं' साँप के जहर का नाश करने वाले, 'मंगलकल्याण- आवासं मंगल तथा आरोग्य के स्थान भूत [और ]' उवसग्गहरपासं उपसंगी को हरण करने वाले पार्श्व नामक यक्ष के स्वामी [ ऐसे ] 'पासं' श्रीपार्श्वनाथ भगवान्को 'वंदामि' वन्दन करता हूँ ॥ १ ॥
३६
भावार्थ — उपसर्गों को दूर करने वाला पार्श्व नामक यक्ष जिनका सेवक है, जो कर्मों को राशि से मुक्त हैं, जिनके स्मरण मात्र से विषैले साँप का जहर नष्ट हो जाता है और जो मंगल तथा कल्याण के अवार हैं ऐसे भगवान् श्री पार्श्वनाथ को मैं वन्दन करता हूँ || १ ||
* बिसहर-फुलिंग, कंठे धारे जो सया मणुओ । तस्स गह-रोग-मारी, दुइजरा जति उवसामं ॥२॥
अन्वयार्थ - 'जो' जो 'मगुओ' मनुष्य 'विसहर-फुलिंगमंत' विषधर स्फुलिङ्ग नामक मन्त्र को 'कंडे' कण्ठ में 'सया' सदा 'इ' धारण करता है 'तत्स' उसके 'ग' गृह, 'रोग' रोग, 'मारी' हैजा और 'दुट्ठजरा' दुष्ट कुपित-ज्वर [ आदि ] 'उवसामं' उपशान्ति 'जंति' पाते हैं ||२||
* विषधर स्फुलिङ्ग - मन्त्रं, कण्ठे धारयति यः सदा मनुजः । तस्य प्ररोगमारीदुष्टज्वरा यान्ति उपशमम् ॥३॥