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जगचिंतामणि चैत्यवंदन ।
११ - - जगचिंतामणि चैत्यवंदन ।
इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! चैत्यवंदन करूं ? इच्छं । अर्थ-सुगम है ।
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* जगचिंतामणि जगहनाह जगगुरु जगरक्खण, जगबंधव जगसत्थवाह जगभावविअक्खण । अट्टावयसेठविअरूव कम्मठ्ठविणासण, चउवीसंपि जिणवर जयंतु अप्पseeसासण || १॥
बात सोचना । ( ३ ) तत्त्व का विचार न करना । ( ४ ) मन में व्याकुल होना । ( ५ ) इज्जत की चाह किया करना । ( ६ ) विनय न करना । ( ७ ) भय का विचार करना । ( ८ ) व्यापार का चिन्तन करना । ( ९, फल में सन्देह करना । ( १० ) निदानपूर्वक फल का संकल्प कर के धर्म- क्रिया करना ॥
वचन के १० दोषः - ( १ ) दुर्वचन बोलना । (२) हूं कारें किया करना । (३) पाप-कार्य का हुक्म देना । ( ४ ) बे काम बोलना । (५) कलह करना । ( ६ ) कुशल-क्षेम आदि पूछ कर आगत स्वागत करना । ( ७ गाली देना । (c) बालक को खेलाना । ( ९ ) विकथा करना । ( १० हँसी - दिल्लगी करना ||
काया के १२ दोषः - ( १ ) आसन को स्थिर न रखना । ( २ ) चारों ओर देखते रहना । (३) पाप वाला काम करना । ( ४ ) अंगड़ाई लेना - बदन तोड़ना । (५) अविनय करना । (६) भींत आदि के सहारे बैठना । ( ७ ) मैल उतारना । (८) खुजलाना । ( ९ ) पैर पर पैर चढ़ाना । ( १० ) कामवासना से अंगों को खुला रखना । ( ११ ) जन्तुओं के उपद्रव से डर कर शरीर को ढांकना । ( १२ ) ऊंघना । सब मिला कर बत्तीस दोष हुए ॥
* जगचिन्तामणयो जगन्नाथा जगद्गुरवो जगद्रक्षणा जगद्बन्धवां जगत्सार्थवाहा जगद्भावविचक्षणा अष्टापदसंस्थापितरूपाः कर्माष्टकविनाशनाचतुर्विंशतिरपि जिनवरा जयन्तु अप्रतिहतशासनाः ॥ १ ॥