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प्रतिक्रमण सूत्र ।
९-सामायिक सूत्र । * करेमि भंते ! सामाइयं । सावज्जं जोगं पच्चक्खामि । जावनियमं पज्जुवासामि, दुविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि । तस्स भंते ! पडिकमाभि निंदामि गरिहामि अप्पाण वोसिरामि ॥
अन्वयार्थ-'भंते' हे भगवन् [मैं] ‘सामाइयं सामायिकव्रत 'करेमि' ग्रहण करता हूँ [ और ] 'सावज्ज' पापसहित 'जोगं' व्यापार का ‘पञ्चक्खामि' प्रत्याख्यान--त्याग करता हूँ। 'जाव' जब तक [ मैं ] 'नियम' इस नियम का पज्जुवासामि' पर्युपासन-सेवन करता रहूँ [ तब तक ] 'तिविहणं' तीन प्रकार के
योगसे ] अर्थात् 'मणणं वायाए कारणं' मन, वचन. काया से 'दुविहं' दो प्रकार का [ त्याग करता है ] अर्थात् 'न करमि' [सावध योग को] न करूँगा [ और] 'न कारवेमि' न कराऊंगा । 'भंते' हे स्वामिन् ! 'तस्स' उससे-प्रथम के पाप से [ मैं ] पडिकमामि' निवृत्त होता हूँ, 'निन्दामि' [उसकी ] निन्दा करता हूँ [ और ] गरिहामि' गर्दा-विशेष निन्दा करता हूँ, 'अप्पाणं' आत्मा को [ उस पाप-व्यापार से ] 'वोसिरामि' हटाता हूँ ॥
* करोमि भदन्त ! सामायिकं । सावा योगं प्रत्याख्यामि । यावत् नियमं पर्युपासे द्विविधं त्रिविधेन मनसा वाचा कायेन न करोमि न कारयामि। तस्य भदन्त ! प्रतिक्रामामि निन्दामि गर्दै आत्मानं व्युत्सृजामि ।