________________
२० ] (३५)प्र०-पहिले अरिहन्तों को और पीछे सिद्धादिकों को
नमस्कार करने का क्या सबब है? उ०-वस्तु को प्रतिपादन करने के क्रम दो होते हैं। एक
पूर्वानुपूर्वी और दूसरा पश्चानुपूर्वी । प्रधान के बाद अप्रधान का कथन करना पूर्वानुपूर्वी है और अप्रधान के बाद प्रधान का कथन करना पश्चानुपूर्वी है । पाँचों परमेष्ठियों में 'सिद्ध' सब से प्रधान हैं और 'साधु' सब से प्रधान, क्यों कि सिद्ध-अवस्था चैतन्य-शक्ति के विकास की आखिरी हद्द है और साधु-अवस्था उस के साधन करने की प्रथम भूमिका है। इस लिये यहाँ पूर्वानुपूर्वी क्रम से नमस्कार किया
गया है। (३६)म०-अगर पाँच परमेष्ठियों को नमस्कार पूर्वानुपूर्वी क्रम
से किया गया है तो पहिले सिद्धों को नमस्कार
किया जाना चाहिए, अरिहन्तों को कैसे ? उ०-यद्यपि कर्म-विनाश की अपेक्षा से 'अरिहन्तों' से 'सिद्ध'
श्रेष्ठ हैं। तो भी कृतकृत्यता की अपेक्षा से दोनों समान ही है और व्यवहार की अपेक्षा से तो 'सिद्ध' से 'अरिहन्त' ही श्रेष्ठ हैं। क्यों कि 'सिद्धों के परोक्ष स्वरूप को बतलाने वाले 'अरिहन्त' ही तो हैं । इस लिये व्यवहार-अपेक्षया 'अरिहन्तों को श्रेष्ठ गिन कर पहिले उन को नमस्कार किया गया है।