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प्रतिक्रमण सूत्र । [श्रीसिद्धाचलजी का चैत्य-वन्दन ।]
श्रीशनञ्जय सिद्धिक्षेत्र, दीठे दुर्गति बारे । भाव धरीने जे चढ़े, तेने भव पार उतारे ॥१॥ अनन्त सिद्धनो एह ठाम, सकल तीरथनो राय । पूर्व नवाणु रिखवदेव, ज्यां ठविआ प्रभु पाय ॥२॥ परजकुंट सोहामणो, कवड जक्ष अभिराम । नाभिराया 'कुलमंडणो', जिनवर करूं प्रणाम ॥३॥
(२) आदीवर निनरायनो, गणधर गुणवंत । प्रगट नाम पुंडरिक जास, मही माहे महंत ॥१॥ पंच क्रोड साथे मुणींद, अणसण तिहां कीध । शुक्लध्यान ध्याता अमूल्य, केवल तिहां लधि ॥२॥ चैत्रीपुनमने दिने ए, पाम्या पद महानन्द । ते दिनथी पुंडरिक गिरि, नाम 'दान' सुखकन्द ॥३॥
[श्रीसिद्धाचलजी का स्तवन ।]
विमलाचल नितु वन्दीये, कीजे एहनी सेवा । मानु हाथ ए धर्मनो, शिवतरु फल लेवा ॥१॥ उज्ज्वल जिनगृह मंडली, तिहां दीपे उत्तंगा । मानु हिमगिरि विभने, आई अम्बर-गंगा ॥२॥ वि०॥