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२१२.
प्रतिक्रमण सूत्र ।
तक्रमण सूत्र।
इच्छामि०, इच्छ० चैत्य-वन्दन करुं? इच्छं चैत्य-वन्दन कर जं किंचि, नमुत्थुणं कह के 'आभवमखंडा' तक 'जय वीयराय' कहे । पीछे इच्छामि० दे कर दूसरी बार चैत्य-वन्दन, जं किंचि, नमुत्थुणं, अरिहंत चेहआणं०, अन्नत्थ, एक नवकार का काउस्सग्ग 'नमो अरिहंताणं' कह कर पार के "नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः" कह कर पहली थुइ पढ़े । पीछे 'लोगस्स० सव्वलोए० एक नवकार का काउस्सग्ग-दूसरी थुइ; पीछे 'पुक्खरवरदीवड्ढे सुअस्स भगवओ० एक नवकार का काउस्सग्ग-तीसरी थुइ; पीछे सिद्धाणं बुद्धाणं० वेयावच्चगराणं० अन्नत्थ०' एक नवकार । का काउस्सग्ग-नमोऽर्हत्-चौथी थुइ कहे । पछेि बैठ के "नमुत्थुणं०, अरिहंत चेहआणं०' इत्यादि पूर्वोक्त रीति से दूसरी बार चार थुइ पढ़े । पछि 'नमुत्थुणं०, जावंति०, इच्छामि०, जावंत केवि साहू०, नमोऽहत्०, उवसग्गहरं० अथवा और कोई स्तोत्र-स्तवन पढ़ कर 'आभवमखंडा' तक जय वीयराय कहे। पीछे इच्छामि दे कर तीसरी वार चैत्य-वन्दन कर के जं किंचि० नमुत्थुणं० कह कर संपूर्ण जय वीयराय कहे। पीछे 'विधि करते हुए कोई अविधि हुई हो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं' ऐसा कहे । सुबह (दो पहर और सन्ध्या के में नहीं) के देव-वन्दन के अन्त में 'इच्छामि०, इच्छा० सज्झाय करूं ? इच्छं और एक नवकार पढ़ के खड़े घुटने बैठ कर 'मन्नह जिणाणं' की सज्झाय कहे।
पऊण-पोरिसी की विधि । जब छह घड़ी दिन चढ़े तब पऊण-पोरिसी पढ़े। 'इच्छामि०,