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प्रतिक्रमण सूत्र ।
सहित मुहपत्ति की पडिलेहणी करे । फिर खगासमण-पूर्वक ‘इच्छाकारेण संदिसह भगवन् सामायिक संदिसाहुं' ? इच्छं' कहे । फिर 'इच्छामि खमा०, इच्छा०, सामायिक ठांउं ? इच्छं' कह के
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ऋद्धि-गारव, रस- गारव, साता - गारव परिहरु माया- शल्य, नियाण- शल्य, मिच्छादंसण-शल्य परिहरु
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क्रोध, मान, परिहरूं माया, लोभ परिहरु पृथ्वीकाय, अप्काय, ते काय की रक्षा करूं वायु काय, वनस्पति- काय, त्रस काय की यतना करूं...
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कुल ५०
१ - पडिलेहण के वक्त पचास बोल कहे जाने का मतलब, कषाय आदि अशुद्ध परिणाम को त्यागना और समभाव आदि शुद्ध परिणाम में रहना है । उक्त बोल पढ़ने के समय मुहपत्ति - पडिलेहण का एक उद्देश्य तो मुहपत्ति को मुँह के पास ले जाने और रखने में उस पर थूक, कफ आदि गिर पड़ा हो तो मुहपत्ति फैला कर उसे सुखा देना या निकाल देना है। जिस से कि उस में संमूर्च्छिम जीव पैदा न हों। दूसरा उद्देश्य, असावधानी के कारण जो सूक्ष्म जन्तु मुहपत्ति पर चढ़ गये हों उन्हें यत्नपूर्वक अलग कर देना है, जिस से कि वे पञ्चाङ्ग - नमस्कार आदि के समय दब कर मर न जायँ । इसी प्रकार पंडिलेभ्रूण का यह भी एक गौण उद्देश्य है कि प्राथमिक अभ्यासी ऐसी ऐसी स्थूल क्रियाओं में मन लगा कर अपने मन को दुनियाँदारी के बखेड़ों से खींच लेने का अभ्यास डाले |
२ - " सामायिक संदिसा हुं" कह कर सामायिक व्रत लेने की इच्छा प्रकट कर के उस पर अनुमति माँगी जाती है और "सामायिके ठाउं " कह कर सामायिक व्रत ग्रहण करने की अनुमति माँगी जाती है । प्रत्येक क्रिया में प्रवृत्ति करने से पहले बार बार आदेश लेने का मतलब सिर्फ आज्ञा-पालन का अभ्यास डालना और स्वच्छन्दता का अभ्यास छोड़ना है ।