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पच्चक्खाण सूत्र। १८३ तीन बार औटा हुआ स्वच्छ पानी। (१२) बहुलेप-चावल आदि का चिकना माँण । (१३) ससिक्थ-आटे आदि से लिप्त हाथ या वरतन का धोवन। (१४) असिक्थ--आटा लगे हुए हाथ या वरतन का कपड़े से छना हुआ धोवन ।
[(५)-आयंबिल-पच्चक्खाण'।] उग्गए सरे, नमुक्कारसहिअं, पोरिस , साढपोरिसिं,माहसहि पच्चस्खाइ । उग्गए मरे, चउविहंपि आहार-असणं, पाणं, खाइमं, साइमं; अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, पच्छन्नकालेणं, दिसामोहेणं, साहुवयणेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं । आयंबिलं पच्चक्खाइ; अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, लेवालेवेणं, गिहत्थसंसठेणं, उक्खिस्तविवेगेणं, पारिट्ठावणियागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं । एगासणं पञ्चक्खाइ; तिविहंपि आहारअसणं, खाइम, साइमं; अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, सागारियागारेणं, आउंटणपसारणेणं, गुरुअब्भुट्ठाणेणं,
१-इस व्रत में प्रायः नरिस आहार लिया जाता है । चावल, उड़द, या सत्त आदि से इस व्रत को किये जाने का शास्त्र में उल्लेख है । इस का दूसरा नाम 'गोण्ण' मिलता है । [ आव० नि०, गा० १६०३ ]।
+ आचामाम्लम् ।
२-आयंबिल में एगासण की तरह दुविहाहार का पच्चक्खाण नहीं किया जाता; इस लिये इस में 'तिविहंपि आहारं' या 'चउन्विहंपि आहार' पाठ बोलना चाहिए।