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पच्चक्खाण सूत्र । १८१ सहसागारेणे, सागारिआगारेणं, आउंटणपसारणेणं, गुरु अब्भुटाणेणं, पारिठ्ठावणियागारेणं', महत्तरागारेणं, सब्बसमाहिवत्तियागारेणं, पाणस लेवेण वा, अलेवेण वा, अच्छेण वा, बहुलेवेण वा, ससित्थेण वा, असित्थेण वा वोसिरह ।
भावार्थ-इस पच्चक्खाण में नमुक्कारसहिअ, पोरिसी आदि का पच्चक्खाण किया जाता है; इस लिये इस में सात आगार भी पोरिसी के ही हैं । एगासण-बियासण में विगइ का पच्चक्खाण करने वाले के लिये — विगइओ' इत्यादि पाठ है । विगह पच्चक्खाण में नौ आगार हैं:
(१) अनाभोग । (२) सहसाकार । (३) लेपालेप-~-घृत आदि लगे हुए हाथ, कुडछी आदि को पोंछ कर उस से दिया माहारं' कह कर पच्चक्खाण करना चाहिए। दुविहाहार में जीमने के बाद पानी तथा मुखवास लिया जाता है, इस लिये इस में 'पाणं' तथा 'साइमं नहीं बोला जायगा। यदि चव्वहाहार करना हो तो 'चउन्विहंपि आहार' कहना चाहिए । इस में जीमने के बाद चारों आहारों का त्याग किया जाता है; इस लिये इस में 'असणं, पाणं' आदि सब कहना चाहिए।
१-यह आगार एकासण, बियासण, आयंबिल, विगइ, उपवास, आदि पच्चक्खाण के लिये साधारण है । इस लिये चउब्विहाहार उपवास के समय गुरु की आज्ञा से मात्र अचित्त जल, तिविहाहार उपवास में अन्न और पानी और आयंबिल में विगइ, अन्न और पानी लिये जाते हैं।
२-'पाणस्स लेवेण वा' आदि छह आगार एकासण करने वाले को चउब्विहाहर और तिविहाहार के पच्चक्खाण में और दुविहाहार में अचित्त भोजन और अचित्त पानी के लेने वाले को ही पढ़ने चाहिए ।
३-'लेवाडेण वा अलेवाडेण वा' इत्यपि पाठः ।