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प्रतिक्रमण सूत्र ।
वर्तमान कुछ तीर्थ — सम्मेतशिखर, अष्टापदं, सिद्धाचल, गिरिनार, आबू, शङ्खेश्वर, केसरिया जी, तारंगा, अन्तरिक्ष, चरकाण, जीरावला, खंभात ये सब तीर्थ भरत क्षेत्र के हैं । इन के सिवाय और भी जो जो चैत्य हैं वे सभी वन्दनीय हैं ।
महाविदेह क्षेत्र में इस समय बीस तीर्थङ्कर वर्तमान हैं, सिद्ध अनन्त हैं; ढाई द्वीप में अनेक अनगार हैं; ये सभी वन्दनीय हैं ।
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४९ ----पोसहं पच्चक्खाण सूत्र ।
+करेमि भंते ! पोसहं, आहार - पोसहं देसओ सव्वओ, सरीरसक्कार -पोसहं सव्वओ, बंभचेर-पोसहं सव्वओ,
१ - श्रावक का ग्यारहवाँ व्रत पौषध कहलाता है । सो इस लिये कि उस से धर्म की पुष्टि होती है । यह व्रत अष्टमी चतुर्दशी आदि तिथियों में चार प्रहर या आठ प्रहर तक लिया जाता है । इस के आहार, शरीर-सत्कार, ब्रह्मचर्य और अव्यापार, ये चार भेद हैं ! [ आवश्यक प० ८३५ ] | इन के देश और सर्व इस तरह दो दो भेद करने से आठ भेद होते हैं । परन्तु परम्परा के अनुसार इस समय मात्र आहार-पौषध देश से या सर्व से लिया जाता है; शेष पाँषध सर्व से ही लिये जाते हैं | चंडव्विहाहार उपवास करना सर्व - आहार -पौषध है; तिविहाहार, आयंबिल, एकासण आदि देश - आहार - पौषध हैं ।
केवल रात्रि-पौषध करना हो तो भी दिन रहते ही चव्विहाहार आदि किसी व्रत को करने की प्रथा है ।
+ करोमि भदन्त ! पौषधं, आहार- पौषधं देशतः सर्वतः, शरीरसत्कार - पांषध सर्वतः ब्रह्मचर्य - पौषधं सर्वतः अव्यापार - पौषधं सर्वतः, चतुर्विधे
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