________________
१६६
प्रतिक्रमण सूत्र । ३१. कलावती-राजा शङ्ख की पतिव्रता पत्ती । इस के दोनों हाथ काटे गये पर पीछे देव-सहायता से अच्छे हो गये थे।
३२. पुष्पचूला--प्रन्निकापुत्र-प्राचार्य की योग्य-शिष्या,जिस ने केवलज्ञान पा कर भी उन की सेवा की थी।
-श्राव० पू०६८८ । ३३-४०. पद्मावती आदि पाठ-श्रीकृष्ण वासुदेव की पतिव्रता त्रियाँ।
-अन्तकृत् वर्ग-५। ४१-४७ यक्षा प्रादिसात-तीव्र स्मरण-शक्ति वाली श्रीस्थूलभद्र की बहिनें।
-भाव पृ० ६९३ ।
४७-मन्नह जिणाणं सज्झाय । * मन्त्रह जिणाणमाणं, मिच्छं परिहरह धरह सम्मत्तं ।
छविह-आवस्सयम्मि, उज्जुत्तो' हाइ पइदिवसं ॥१॥
अन्वयार्थः-'जिणाणम्' तीर्थङ्करों की 'आणं' आज्ञा को 'मन्नह' मानो, 'मिच्छं' मिथ्यात्व को 'परिहरह' त्यागो, 'सम्मत्तं' सम्यक्त्व को 'धरह' धारण करो तथा] 'पइदिवसं' हर दिन 'छविह-आवस्सयम्मि' छह प्रकार के आवश्यक में 'उज्जुत्तो' सावधान होई' हो जाओ ॥१॥ + मन्यध्वं जिनानामाज्ञां, मिथ्यात्वं परिहरत धरत सम्यक्त्वम् ।
सम्यक्त्वम् । षड्विधावश्यके, उद्यको भवति प्रतिदिवसम् ॥१॥ १-'उज्जुत्ता होह' ऐसा पाठ हो तो विशेष संगत होगा।