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________________ १४० प्रतिक्रमण सूत्र । अन्वयार्थ-'शान्तिनिशान्त' शान्ति के मन्दिर, 'शान्त' राग-द्वेष-रहित, 'शान्ताऽशिवं' उपद्रवों को शान्त करने वाले और 'स्तोतुः शान्तिनिमित्त स्तुति करने वाले की शान्ति के कारणभूत, 'शान्ति' श्रीशान्तिनाथ को 'नमस्कृत्य' नमस्कार कर के 'शान्तये' शान्ति के लिये 'मन्त्रपदैः' मन्त्र-पदों से 'स्तौमि' स्तुति करता हूँ ॥१॥ भावार्थ-श्रीशान्तिनाथ भगवान् शान्ति के आधार हैं, राग-द्वेष-रहित हैं, उपद्रवों के मिटाने वाले हैं और भक्त जन को शान्ति देने वाले हैं; इसी कारण मैं उन्हें नमस्कार कर के शान्ति के लिये मन्त्र-पदों से, उन की स्तुति करता हूँ ॥१॥ ओमितिनिश्चितवचसे, नमो नमो भगवतेऽहते पूजाम् । शान्तिजिनाय जयवते, यशस्विने स्वामिने दमिनाम् ॥२॥ अन्वयार्थ--'ओमितिनिश्चितवचसे' ॐ इस प्रकार के निश्चित वचन वाले, 'भगवते' भगवान् , 'पूजाम् पूजा 'अर्हते' पाने के योग्य, 'जयवते' राग द्वेष को जीतने वाले, 'यशस्विने' कीर्ति वाले और 'दमिनाम्' इन्द्रिय-दमन करने वालों-साधुओं-के वृद्ध-परम्परा ऐसी है कि पहिले, लोग इस स्तोत्र को शान्ति के लिये साधु व यति के मुख से सुना करते थे। उदयपुर में एक वृद्ध यति बार बार इसके सुनाने से ऊब गये, तब उन्हों ने यह नियम कर दिया कि 'दुक्खक्खओ कम्मक्खओ' के कायोत्सर्ग के बाद-प्रतिक्रमण के अन्त में-इस शान्ति को पढ़ा जाय, ता कि सब सुन सकें । तभी से इस का प्रतिक्रमण में समावेश हुआ है।
SR No.010596
Book TitleDevsi Rai Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size16 MB
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