________________
अड्ढाइज्जेसु सूत्र ।
१३७.
४२ ---- अड्ढाइज्जेसु [मुनिवन्दन] सूत्र | अड्ढा इज्जेसु दीवसमुद्देसु, पनरससु कम्मभूमीसु, जावंत केवि साहू, रयहरणगुच्छपडिग्गहधारा, पंचमहव्वयधारा अट्ठारससहस्ससीलिंगेधारा, अक्ख (क्खु) यायारचरिता,
+ अर्धतृतीयेषु द्वीपसमुद्रेषु, पञ्चदशसु कर्मभूमिषु, यावन्तः केऽपि साधवो रजोहरणगुच्छकपतद्ग्रहधाराः, पञ्चमहाव्रतधाराः, अष्टादशसहस्रशीलाङ्गधाराः, अक्षताचारचारित्राः तान् सर्वान् शिरसा मनसा मस्तकेन वन्दे ॥१॥
,
१ – शीलाङ्ग के १८००० भेद इस प्रकार किये हैं: - ३ योग, ३ करण ४ संज्ञाएँ, ५ इन्द्रियाँ, १० पृथ्वीकाय आदि (५ स्थावर, ४ त्रस और १ अजीव ) और १० यति-धर्मः इन सब को आपस में गुणने से १८००० भेद होते हैं । जैसे:- क्षान्तियुक्त, पृथ्वीकायसंरक्षक, श्रोत्रन्द्रिय को संवरण करने वाला और आहार-संज्ञा रहित मुनि मन से पाप- व्यापार न करे । इस प्रकार क्षान्ति के स्थान में आर्जव मार्दव आदि शेष ९ यति-धर्म कहने से कुल १० भेद होते हैं । ये दस भेद ' पृथ्वी काय संरक्षक' पद के संयोग से हुए । इसी तरह जलकाय से ले कर अजीव तक प्रत्येक के दस दस भेद करने से कुल १०० भेद होते हैं । ये सौ भेट 'श्रोत्रेन्द्रिय' पद के संयोग से हुए । इसी प्रकार चक्षु आदि अन्य चार इन्द्रियों के सम्बन्ध से चार सौ भेद, कुल ५०० भेद । ये पाँच सौ भेद ' आहार - संज्ञा' पद के सम्बन्ध से हुए, अन्य तीन संज्ञाओं के सम्बन्ध से पन्द्रह सौ कुल २००० भेद । ये दो हजार 'करण' पदकी योजना से हुए, कराना और अनुमोदन पदके सबन्ध से भी दो दो हजार भेद, कुल ६००० भेद । ये छह हज़ार भेद मन के सम्बन्ध से हुए; वचन और काय के संबन्ध से भी छह छह हजार, सब मिला कर १८००० भेद होते हैं । जोए करणे सन्ना, इंदिय भोमाइ समणधम् य | सीलंगसहस्साणं अट्ठारससहस्स निष्पत्ती ॥
,
[ दर्शवेकालिक नियुक्ति गाथा १७७, पृ० ]