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अब्भुडियो सूत्र । १२७ अन्वयार्थ----'अहं' मैं 'अभिंतरदेवसि' दिन के अन्दर किये हुए अपराध को 'खामेउं' खमाने के लिये 'अब्भुट्टिओ' तत्पर हुआ हूँ, इस लिये 'भगवन्' हे गुरो ! [ आप ] 'इच्छाकारेण' इच्छा-पूर्वक 'संदिसह' आज्ञा दीजिए। ___ * इच्छं, खामेमि देवसि।
अन्वयार्थ-'इच्छं' आप की आज्ञा प्रमाण है। 'खामेमि देवासअं' अब मैं दैनिक अपराध को स्वमाता हूँ ।
जं किंचि अपत्ति, परपत्तिअं, भत्ते, पाणे, विणये, वेआवच्चे, आलावे, संलावे, उच्चासणे, समासणे, अंतरभासाए, उवरिभासाए, जं किंचि मज्झ विणयपरिहीणं सुहुमंवा बायरं वा तुब्भे जाणह, अहं न जाणामि, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ।
अन्वयार्थ-हे गुरो ! 'जं किंचि' जो कुछ 'अपत्तिअं' अप्रीति या 'परपत्ति विशेष अप्रीति हुई उसका पाप निष्फल हो] तथा 'भत्ते' आहार में 'पाणे पानी में 'विणये विनय में 'वेआवच्चे' सेवा-शुश्रूषा में 'आलावे' एक बार बोलने में 'संलावे' बार बार बोलने में 'उच्चासणे' ऊँचे आसन पर बैठने में 'समासणे' बराबर के आसन पर बैठने में 'अंतरभासाए' भाषण के बीच बोलने में या 'उवरिभासाए' भाषण के बाद बोलने में 'मज्झ'
* इच्छामि । क्षमयामि देवसिकम् ।
* यत्किञ्चिदप्रीतिकं, पराप्रीतिकं, भक्ते, पाने, विनये, वैयावृत्ये, आलापे, पेलापे, उच्चासने, समासने, अन्तर्भाषायां, उपरिभाषायां, यत्किश्चिन्मम विनयपरिहीनं सूक्ष्म वा बादरं वा यूयं जानीथ, अहं न जाने, तस्य मिथ्या मे दुष्कृतम् ।