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भावार्थ - इस गाथा में प्रतिक्रमण करने के चार कारणों
वंदित सूत्र |
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का वर्णन किया गया है:
(१) स्थूल प्राणातिपातादि जिन पाप कर्मों के करने का श्रावक के लिये प्रतिषेध किया गया है उन कर्मों के किये जाने पर प्रतिक्रमण किया जाता है । (२) दर्शन, पूजन, सामायिक आदि जिन कर्तव्यों के करने का श्रावक के लिये विधान किया गया है। उन के न किये जाने पर प्रतिक्रमण किया जाता है । (३) जैनधर्म- प्रतिपादित तत्वों की सत्यता के विषय में संदेह लाने पर अर्थात् अश्रद्धा उत्पन्न होने पर प्रतिक्रमण किया जाता है । (४) जैनशास्त्रों के विरुद्ध, विचार प्रतिपादन करने पर प्रतिक्रमण किया जाता है ॥४८॥
* खामेमि सव्वजीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे ।
मिती मे सव्वभूतु, वेरं मज्झ न केई || ४९ ॥ अन्वयार्थ – [ मैं] 'सव्वजीवे' सब जीवों को 'खामेमि' क्षमा करता हूँ । 'सव्वे' सब 'जीवा' जीव 'मे' मुझे 'खमंतु' क्षमा करें । 'सव्वभूएसु' सब जीवों के साथ 'मे' मेरी 'मित्ती' मित्रता है । 'केणई' किसी के साथ 'मज्झ' मेरा 'वेर' वैरभाव 'न' नहीं है ॥ ४९ ॥
भावार्थ - किसी ने मेरा कोई अपराध किया हो तो मैं
* क्षमयामि सर्वजीवान्, सर्व जीवाः क्षाम्यन्तु मे । मैत्री मे सर्वभूतेषु वैरं मम न केनचित् ॥ ४९ ॥